१ महात्मा ज्योतिबा फुले का जीवन परिचय
१.१ महात्मा ज्योतिबा फुले का पूरा नाम-
१.२. महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म
१.३. महात्मा ज्योतिबा फुले फुले की जाति
१.४. महात्मा ज्योतिबा फुले का विवाह
१.५. महात्मा ज्योतिबा फुलेकी शिक्षा
१.६ महात्मा ज्योतिबा फुले का शीर्षक:
१.७. महात्मा ज्योतिबा फुलेकी विचारधारा
१.८ महात्मा ज्योतिबा फुले नगरपालिका आयुक्त बने
२.महात्मा ज्योतिबा फुले की जाती शिक्षा में बनी बाधा
३. ब्राम्हण दोस्त की शादी में महात्मा ज्योतिबा फुले का अपमान
४. महात्मा ज्योतिबा फुलेकी प्रमुख कितावे
५. महात्मा ज्योतिबा फुले से संबंधित सगठन:
५.1. बाल विधवा विवाह प्रतिबंधक समाज
५.2. सत्यशोधक समाज
५.३. लड़कियों के पहले स्कूल की शुरुआत:
५.४. फातिमा शेख
५.५. समाचार पत्र
५.६. रात्रि पाठशाला
५.७ युवा विधवाओं के लिये एक आश्रम की स्थापना
५.८. बालहत्या प्रतिबंधक गृह
६. महात्मा ज्योतिबा फुले के समाज सुधार के कार्य
६.१. विधवा विवाह
६.२. सामूहिक स्नानागार का निर्माण
६.३. कुआं पिछड़ों के लिए खोल दिया
६.४. पानी की टंकी
६.५. लैंगिक समानता
६.६. रुढ़िवादी मान्यताओं को “पाखंडी” करार दिया
६.७. साथ भोजन करने की शुरुआत
६.८. जन जागरूकता अभियान
६.९. पहली बार ‘दलित‘ शब्द का इस्तेमाल
६.१०. विधवाओं को गंजा करने की कुप्रथा
६.११ बाल विवाह
६.१२. प्रशासनिक सुधारों
६.१३. वर्नाक्युलर ऐक्ट
६.१४. बिना पुरोहित के विवाह-संस्कार
६.१५. गरीब किसानों के हक में भी आवाज उठाई
७. महात्मा ज्योतिबा फुले ने दूसरी शादी से क्यों मना किया
८. आनुपातिक प्रतिनिधित्व की माँग
९. महात्मा ज्योतिबा फुले के विचार
९.१. टॉप 10 Mahatma Jyotiba Phule Quotes in Hindi
९.२. विद्यार्थियों के लिए Mahatma Jyotiba Phule Quotes in Hindi
९.३. Mahatma Jyotiba Phule Motivational Quotes in Hindi
९.४. महात्मा ज्योतिबा फुले के सामाजिक विचार
१०. सच को कहने का एक तरीका अनुभव
११. जाति का मतलब सवर्णो से दूरी
१२. मोत को बुलाव देना
१२.१. काला धागा
१२.२. कमर में झाडू
१२.३. गले में हण्डी
१३. महात्मा ज्योतिबा फुलेकी हत्या की कोशिश
१४. निष्कर्ष:
१५. मृत्यु:
१ महात्मा ज्योतिबा फुले का जीवन परिचय
१.१ महात्मा ज्योतिबा फुले का पूरा नाम-
ज्योतिराव गोविंद राव फुले था.
बाद में उन्हें लोग अनेक उपनामों पुकारने लगे.
महात्मा फुले,
जोतिबा फुले,
जोतिराव फुले
१.२. महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म
1 अप्रैल 1827 को ज्योतिराव गोविंदराव फुले का जन्म महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था.
महात्मा ज्योतिबा फुले पिता का नाम गोविंदराव पूना था. ज्योतिराव के परिवार का मूल नाम “गोरहे” था
ज्योतिराव के पिता और चाचाओं के फूल बेचने का काम करने के कारण परिवार ने “फुले” नाम अपनाया.
जब ज्योतिराव केवल नौ महीने के थे, तब उनकी मां चिमनाबाई की मृत्यु हो गई. जिसके बाद उनका लालन-पालन सगुणाबाई नाम की महिला ने किया।
१.३. महात्मा ज्योतिबा फुले की जाति
महात्मा ज्योतिबा फुले सब्जियों की खेती करने वाली माली जाति से संबंधित थे। जिसे काछी, कुशवाह, कोयरी, माली, मोर्या, शाक्य, मरई, पनारा, सोनकर आदि नामों से भी जाना जाता है
१.४. महात्मा ज्योतिबा फुले का विवाह
1840 में जब महात्मा ज्योतिबा फुले मात्र 13 साल के थे,
तब उन्होंने सावित्रीबाई से विवाह कर लिया.
१.५.महात्मा ज्योतिबा फुले की शिक्षा
महात्मा ज्योतिबा फुले जब 7 साल के हुए तो उन्हें गांव के स्कूल में भेजा गया.
1847 में ग्रेजुएशन की उपाधि हासिल की.
१.६ महात्मा का शीर्षक:
11 मई, 1888 को महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्त्ता विट्ठलराव कृष्णजी वांडेकर द्वारा मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।
उनके नाम से डाक टिकट भी जारी किए जा चुके हैं.
१.७. महात्मा ज्योतिबा फुले की विचारधारा
महात्मा ज्योतिबा फुले की विचारधारा स्वतंत्रता, समतावाद और समाजवाद पर आधारित थी|
महात्मा ज्योतिबा फुले थॉमस पाइन की पुस्तक ‘द राइट्स ऑफ मैन’ से प्रभावित थे
उनका मानना था कि सामाजिक बुराइयों का मुकाबला करने का एकमात्र तरीका महिलाओं निम्न वर्ग के लोगों को शिक्षा प्रदान करना था।
महात्मा ज्योतिबा फुले सिर्फ एक समाज सुधारक और कार्यकर्ता ही नहीं थे, बल्कि
एक सफल व्यवसायी भी थे.
उन्होंने नगर निगम के लिए ठेकेदार और कृषक के रूप में भी काम किया.
१.८ महात्मा ज्योतिबा फुले नगरपालिका आयुक्त बने
वह पूना नगरपालिका के आयुक्त नियुक्त किये गए 1876 और 1883 के बीच, वह पूना नगर पालिका के आयुक्त थे.
२. महात्मा ज्योतिबा फुले की जाती शिक्षा में बनी बाधा
18वीं सदी की शुरुआत थी. पूना में श्रीमंत पेशवा बाजीराव द्वितीय का प्रभुत्व था.
जो पेशवाओं का गढ़ कहे जाते थे पेशवाई शासक, जातीय दंभ तथा अस्पृश्यों पर अत्याचार के लिए जाने जाते थे.
समय ही कुछ ऐसा था कि समाज में जातिभेद गहरा रहा था. सवर्णों के हाथ में शासन था
दलितों के हाथ में न ज़मीन थी, न दौलत और न ज्ञान. न तो स्कूलों में उनके लिए जगह थी ना ही दफ्तरों में कोई पूछता था.
उन्हें अछूत पुकारा जाता वो अपने पीठ पर पेड़ के पत्ते बांध कर चलते ताकि उनकी परछाई से दूषित सड़क पवित्र हो जाए.
इसी अमानवीय भेदभाव के बीच ज्योतिबा फुले के पिता गोविंदराव फुले ने हिम्मत कर के स्कूल में उनका दाखिला कराया.
हल्ला हो गया… शूद्र ने अपने बेटे को पाठशाला भेज दिया. पाठशाला अपवित्र हो गई.
दबाव इतना बढ़ा कि उन्हें ज्योतिबा का नाम स्कूल से हटवाना पड़ा.
महात्मा ज्योतिबा फुले एक होनहार छात्र थे। अपनी पहली पाठशाला में उन्होंने पढ़ना, लिखना और अंकगणित की मूल बातें सीखीं।
माली समुदाय के बच्चों के लिए उन दिनों अपने शिक्षा को निरंतर रखना आम बात नहीं थी। पेशवाओं ने इसका बिरोध किया इसलिए, फुले को स्कूल से निकाल दिया।
महात्मा ज्योतिबा फुले एक प्रतिभाशाली युवक थे पेशवाओं विरोध के कारण कम उम्र में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी.
अनमने मन से उन्होंने अपने पिता के साथ उनके खेत में काम करना शुरू कर दिया।उ न्होंने घर पर ही पढ़ाई जारी रखी.
एक पादरी और शिक्षक ने उनका एडमिशन वर्ष 1841 में इंग्लिश मीडियम स्कॉटिश मिशनरी हाईस्कूल (पुणे) में करवा दिया.,
जहाँ महात्मा ज्योतिबा फुले नेअपनी शिक्षा पूरी की।
कुछ समय उपरांत उनके एक पड़ोसी ने फुले के पिता को उनकी शिक्षा पूरी करने के का आग्रह किया।
३. ब्राम्हण दोस्त की शादी में महात्मा ज्योतिबा फुले का अपमान
महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म एक साधारण माली परिवार में हुआ था. उनके पिता गोविंदराव फूल बेचकर घर चलाते थे.
उनके पिता की दुकान में मुंशी का काम करने वाला लड़का जाति से ब्राह्मण था.
उसने अपनी शादी पर ज्योतिबा को आने का निमंत्रण दिया. और ज्योतिबा चले भी गए.
तब उनकी उम्र यही कोई 11-12 वर्ष रही होगी. बारात में पहुंचे तो दोस्त संग नाचने लगे,
इसी क्रम में उनका पैर भीड़ में खड़े एक व्यक्ति को लग गया. पहले तो उसने ध्यान नहीं दिया लेकिन थोड़े ही देर बाद उसे वो चीख पड़ा
ये शूद्र अछूत हमारी शादी में क्या कर रहा है.
तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहां आने की और हमारे संग नाचने की.
“इस शूद्र को यहां किसने आने दिया”. देखते-देखते हंगामा खड़ा हो गया,
हर कोई नाक-भौं सिकोड़े ज्योतिबा को घूर रहा था.
तभी किसी ने लाठी से उनपर वार कर दिया.
वो नीचे गिर गए पास खड़े कुछ लोग मदद के लिए आगे बढ़े तो लोगों ने उनका हाथ पकड़ कर कहा-
पाप के भागी क्यों बनना चाह रहे हो. आगे बढ़ो, इसे यहीं पड़े रहने दो..और ज्योतिबा को शादी से बाहर कर दिया गया.
वो बिलखते हुए घर आए, पिता को सारी बात बताई
तो वो बोले- ये समाज ऐसा ही है बेटा. हम सालों से यूं ही जीते आए हैं, आगे भी ऐसे ही जीना होगा
इतना सुनते ही ज्योतिबा उखड़ पड़े और बोले-
ये जीवन आपको मंज़ूर होगा, पर मुझे नहीं. मैं पढ़ूंगा और बदलाव भी लाऊंगा. मैं वचन लेता हूं.
लेकिन न तो ज्योतिबा को, न ही उस लड़के को पता था कि ब्राह्मण के विवाह में पिछड़ी जाति के किसी व्यक्ति के आने पर मनाही थी.
ये घटना 11 साल के ज्योतिबा के लिए निर्णायक साबित हुई.
बच्चे का मन था. इस घटना से गहरा चोटिल हुआ. लेकिन उन्हें ये भी समझ आ गया कि जातिवाद की असलियत क्या है.
जातिवाद के इस ज़हर से लड़ने का उन्हें एक ही माध्यम नजर आया – शिक्षा. इसलिए उन्होंने अपने ही घर से शुरुआत की.
दिन भर काम के बाद रात को वो अपनी पत्नी सावित्रीबाई को अपने साथ बिठाते और पढ़ाते.
४. महात्मा ज्योतिबा फुले की प्रमुख कितावे
लोगों को अशिक्षा, पुरोहितशाही, जातीय भेदभाव, उत्पीड़न, भ्रष्टाचार आदि के विरुद्ध जागरूक करने हेतु जो पुस्तकें उन्होंने रचीं, उसकी लिस्ट इस प्रकार है
1- तृतीय रत्न (नाटक, 1855),
2- छत्रपति राजा शिवाजी का पंवड़ा (1869),
महात्मा ज्योतिबा फुले पर शिवाजी महाराज का बहुत असर था. उन्होंने ही रायगढ़ जाकर पत्थर और पत्तियों के ढेर तले दबी शिवाजी महाराज की समाधि को खोजा था और उसकी मरम्मत करवाई थी.
बाद में उन्होंने शिवाजी महाराज पर एक छंदबद्ध जीवनी भी लिखी, जिसे पोवाड़ा भी कहा जाता है.
3- ब्राह्मणों की चालाकी( 1869),
4- ग़ुलामगिरी(1873),
जातिवाद की पोल खोलने के लिए उन्होंने एक किताब भी लिखी. ‘ग़ुलामगिरी’ नाम की इस किताब में ज्योतिबा फुले लिखते हैं,
“ब्राह्मण-पंडा-पुरोहित लोग अपना पेट पालने के लिए, अपने पाखंडी ग्रंथों के माध्यम से, जगह-जगह बार-बार अज्ञानी शूद्रों को उपदेश देते रहे, जिसकी वजह से उनके दिलो-दिमाग़ में ब्राह्मणों के प्रति पूज्यबुद्धि उत्पन्न होती रही. ब्राह्मणों ने इन लोगों को, उनके मन में ईश्वर के प्रति भावना को अपने प्रति समर्पित करने के लिए मजबूर किया. यह कोई मामूली अन्याय नहीं है. इसके लिए उन्हें ईश्वर को जवाब देना होगा.”
५. शक्तारायच आसुद (1881)।
६. मेमोरियल एड्रेस्ड टू द हंटर एजुकेशन कमीशन (1882),
७. शतकार्याचा असुदे (1883),
८- किसान का कोड़ा (1883),
जिसका सार यह है कि भारत का किसान नौकरशाही, साहूकार, बाजार की व्यवस्था, जाति प्रथा आदि से जकड़ा हुआ है. यही उसकी परेशानी का मूल है
.प्राकृतिक आपदाएं इसमें अलग से तड़का लगाती रहती हैं और किसान मजबूर होकर तिल-तिल मरने को विवश होता रहता है.
वे इस बात के समर्थक थे कि किसानों के बच्चों को बढ़ईगिरी, लोहारगिरी जैसे काम सीखने और करने चाहिए.
कौशल विकास उनकी तरक्की की नई इबारत लिखने में मददगार होंगे.
यह उनकी आय का अतिरिक्त स्रोत होंगे तो खेती पर निर्भरता तनिक कम होगी
पानी पर हर किसान का हक होना चाहिए.
९- अंखड़ादि काव्य रचनाएं (रचनाकाल ज्ञात नहीं).
१०. लेटर टू मराठी ग्रन्थकार सभा (1885),
११- सतसार अंक-1 और 2 (1885),
१२- इशारा (1885),
१३- अछूतों की कैफियत (1885),
१४ ग्रामजोश्या संबंधी जाहिर खबर (1886)
१५ सत्यशोधक समाज के लिए उपयुक्त मंगलगाथाएं
तथा पूजा विधि (1887)
१६. पुणे सत्य शोधक समाज रिपोर्ट (1877),
१७- सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक (1889),
५. महात्मा ज्योतिबा फुले से संबंधित सगठन:
५.1. बाल विधवा विवाह प्रतिबंधक समाज
1848 में पुणे में “बाल विधवा विवाह प्रतिबंधक समाज” की स्थापना की।
५.2. सत्यशोधक समाज
शूद्रों-अतिशूद्रों की शिक्षा को लेकर राजा राममोहन राय और केशवचंद सेन दोनों के विचार थे
संसाधन उच्च वर्ग के पास थे, इसलिए शिक्षा भी पहले उनके हिस्से आती थी.
पहले समाज के उच्च वर्गों में शिक्षा के न्यूनतम स्तर को प्राप्त कर लिया जाए.
ऊपर के स्तर पर शिक्षा अनुपात बढ़ेगा तो उसका अनुकूल प्रभाव निचले स्तर पर भी देखने को मिलेगा.
समाज सुधारकों का मानना था कि उच्च वर्ग से रिसकर ये ज्ञान नीचे भी पहुंच जाएगा.
अर्थशास्त्र की भाषा में इसे ‘रिसाव का सिद्धांत’ या ट्रिकल डाउन थ्योरी कहते हैं. इसके अनुसार, ऊपर के वर्गों की समृद्धि धीरे-धीरे रिसकर समाज के निचले वर्गों तक पहुंचती रहती है.
यानी शिक्षा के क्षेत्र में ट्रिकल डाउन थ्योरी भारत जैसे देश में सफल नहीं हो सकती
क्योंकि ये जन्म से ही निर्धारित हो जाता था कि
कौन पढ़ेगा और
कौन श्रम करेगा और
कौन शिक्षा प्राप्त करने वालों की सेवा करेगा.
इसी के चलते फुले ने अपने अनुयायियों के साथ मिलकर
24 सितंबर, 1873 को ‘सत्य शोधक समाज’ की नींव रखी.
सामाजिक न्याय की दिशा में ये एक बड़ा कदम था
जिसका अर्थ था सत्य के साधक ’ताकि महाराष्ट्र में निम्न वर्गों को समान सामाजिक और आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकें।
हालांकि ये तरीका बिलकुल कारगर नहीं था ऐसा सोचने वाले ये भूल जाते थे कि
प्राचीन काल में जब हर द्विज बच्चे को अनिवार्यतः गुरुकुल जाना पड़ता था, तब ब्राह्मणों का शिक्षानुपात लगभग शत-प्रतिशत होता था.
वहीं, निचली जातियों का शिक्षानुपात शून्य पर टिका रहता था.
जिसका उद्देश्य था शूद्रों-अतिशूद्रों को पंडे- पुजारी, पुरोहित और सूदखोरों की गुलामी से आजादी दिलाना.
सत्य शोधक समाज की शाखाएं मुम्बई और पुणे के गांवों और कस्बों में खोली गई.
एक दशक के अंदर इस संगठन ने पिछड़ों और अतिपिछड़ों के बीच एक क्रांति का संचार कर दिया.
जिसके चलते कई लोगों ने शादी और नामकरण के लिए पंडे पुरोहितों को बुलाना छोड़ दिया.
ऐसे में इन लोगों को धमकाया गया कि बिना संस्कृत के उनकी प्रार्थना ईश्वर तक नहीं पहुंचेगी.
तब फुले ने सन्देश दिया कि जब तेलगु, तमिल, कन्नड़, बांग्ला में प्रार्थना ईश्वर तक पहुंच सकती है, तो अपनी भाषा में की गई प्रार्थना क्यों नहीं पहुंचेगी.
कई मौकों पर फुले ने खुद पुरोहित बन संस्कार संपन्न करवाए और ऐसी प्रथा चलाई,
जिसमें पिछड़ी जाति का व्यक्ति ही पुरोहित चुना जाने लगा.
५.३. महात्मा ज्योतिबा फुले ने लड़कियों के पहले स्कूल की शुरुआत:
1 जनवरी 1848 को पुणे के बुधवार पेठ के भिड़ेवाड़ा में लड़कियों के पहले स्कूल की शुरुआत की.
और महज़ 17 साल की उम्र में सावित्रीबाई ने इस स्कूल में बतौर शिक्षिका पढ़ाना शुरू किया.
शुरुआत में स्कूल में सिर्फ़ 9 लड़कियां पढ़ने के लिए राज़ी हुई. फिर धीरे-धीरे इनकी संख्या 25 हो गई.
उस जमाने में बेटियों को पढ़ाने का प्रचलन नहीं था.
बड़े, सम्पन्न और सवर्ण भी ऐसा करने से हिचकिचाते थे.
जो अपनी बेटियों को पढ़ाते भी थे, वे नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी के साथ कोई दलित बेटी पढ़े.
1851 तक दोनों ने मिलकर पूने में 3 ऐसे स्कूल खोले जिनमें लड़कियों को शिक्षा दी जाती थी.
स्कूल के करिकुलम में गणित, विज्ञान और समाजशास्त्र भी शामिल था.
इन तीनों स्कूलों को मिलाकर छात्रों की संख्या 150 थी. पढ़ाने का तरीक़ा भी सरकारी स्कूलों से अलग था.
, लेकिन 1857 के विद्रोह के बाद धन की कमी के कारण वर्ष 1858 तक ये स्कूल बंद हो गए थे।
“फुले दम्पति के स्कूल में पढ़ाई का स्तर इतना बेहतर था कि सरकारी स्कूल के मुक़ाबले पास होने का प्रतिशत ज़्यादा हुआ करता था”
लोगों ने ज्योतिराव के पिता गोविंदराव को धमकाया, आपका लड़का धर्म के ख़िलाफ़ जा रहा है.
दबाव में गोविंदराव ने ज्योतिबा को स्कूल बंद करने को कहा.
ज्योतिराव नहीं माने और तब उनके पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया.
घर से निकलकर भी ज्योतिराव और सावित्रीबाई ने पढ़ाने का काम जारी रखा.
महिला शिक्षा पर काम करने को ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सम्मानित किया.
५.४. फातिमा शेख
वह भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक व समाज सुधारक थीं।
1849 में, फातिमा और सावित्रीबाई ने शेख के घर पर एक स्कूल की स्थापना की।
सावित्रीबाई और महात्मा ज्योतिबा फुले ने 1850 के दशक में दो शैक्षिक ट्रस्टों की स्थापना की।
५.५. समाचार पत्र
महात्मा ज्योतिबा फुले का संगठन सत्य शोधक समाज दीनबंधु नाम का एक समाचार पत्र निकालता था.
५.६. रात्रि पाठशाला
1853 में पति-पत्नी ने अपने मकान में प्रौढ़ों के लिए रात्रि पाठशाला खोली।
५.७ युवा विधवाओं के लिये एक आश्रम की स्थापना
महात्मा ज्योतिबा फुले ने विधवाओं की दयनीय स्थिति को समझा तथा युवा विधवाओं के लिये एक आश्रम की स्थापना की
५.८. बालहत्या प्रतिबंधक गृह
महात्मा ज्योतिबा फुले ने गर्भवती स्त्रियों के लिए एक केयर सेंटर शुरू किया. जिसका नाम था “बालहत्या प्रतिबंधक गृह”.
खासकर गर्भवती विधवाओं के लिए ज्योतिबा ने एक घर खोला, जहां समाज से निकाली गई ऐसी महिलाएं आकर बच्चे को जन्म दे सकें और रह सकें.
फुले दम्पत्ति ने एक ऐसे घर का निर्माण किया जहां दुराचार की शिकार प्रेग्नेंट हो चुकी बेटियों के सुरक्षित प्रसव की व्यवस्था थी.
उनमें से अगर कोई युवती अपने नवजात को नहीं ले जाना चाहती तो वे वहीं छोड़ सकती थीं.
उन बच्चों का लालन-पालन फुले दम्पत्ति की देखरेख में होता.
६. महात्मा ज्योतिबा फुले के समाज सुधार के कार्य
६.१. विधवा विवाह
महात्मा ज्योतिबा फुले ने विधवा विवाह का न केवल समर्थन किया बल्कि शुरू भी कराया.
उस समय समाज में विधवाओं की हालत बहुत ही ज्यादा खराब हुआ करती थी
ज्योतिबा फुले ने विधवा पुनर्विवाह के लिए भी काफी काम किया.
६.२. सामूहिक स्नानागार का निर्माण
वर्ष 1868 में ज्योतिराव ने अपने घर के बाहर एक सामूहिक स्नानागार का निर्माण करने का फैसला किया,
६.३. कुआं पिछड़ों के लिए खोल दिया
ज्योतिबा फुले ने अपने घर का कुआं पिछड़ों के लिए खोल दिया था
६.४. पानी की टंकी
छुआछूत को खत्म करने के लिए जिसे उस समय अछूतोद्धार भी कहा जा रहा था, ज्योतिबा ने अछूत बच्चों को अपने घर पर पाला और
अपने घर की पानी की टंकी उनके लिए खोल दी और इसका नतीज ये हुआ कि उन्हें ही जाति से बहिष्कृत कर दिया गया।
६.५. लैंगिक समानता
वह लैंगिक समानता में विश्वास रखते थे और अपनी सभी सामाजिक सुधार गतिविधियों में पत्नी को शामिल कर उन्होंने अपनी मान्यताओं का अनुकरण किया।
६.६. रुढ़िवादी मान्यताओं को “पाखंडी” करार दिया
ज्योतिराव ने ब्राह्मणों और अन्य उच्च जातियों की रुढ़िवादी मान्यताओं का विरोध किया तथा उन्हें “पाखंडी” करार दिया।
६.७. साथ भोजन करने की शुरुआत
सभी जातियों के सदस्यों के साथ भोजन करने की शुरुआत की।
६.८. जन जागरूकता अभियान
जातिगत भेदभाव के खिलाफ जन जागरूकता अभियान शुरू किया
जिसने आगे चलकर डॉ. बी.आर. अंबेडकर और महात्मा गांधी की विचारधाराओं को प्रभावित किया
उन्होंने महाराष्ट्र में अस्पृश्यता और जाति व्यवस्था को समाप्त करने के लिये काम किया
६.९. पहली बार ‘दलित‘ शब्द का इस्तेमाल
कई लोगों द्वारा यह माना जाता है कि दलित जनता की स्थिति के चित्रण के लिये फुले ने ही पहली बार ‘दलित‘ शब्द का इस्तेमाल किया था
६.१०. विधवाओं को गंजा करने की कुप्रथा
जिसका विरोध करते हुए फुले दम्पति ने नाइयों की हड़ताल कराई और इस प्रथा के ख़िलाफ़ ज़ोर-शोर से आवाज़ उठाई
६.११ बाल विवाह
ज्योतिबा फुले ने बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई.
बेटियों का विवाह बहुत कम उम्र में करने की परंपरा थी.
महात्मा बाल विवाह के विरोधी थे.
६.१२. प्रशासनिक सुधारों
पिछड़ों और महिलाओं के हक़ में आवाज उठाने के अलावा उन्होंने प्रशासनिक सुधारों के सम्बन्ध में भी काम किया.
साल 1878 की बात है.
६.१३. वर्नाक्युलर ऐक्ट
वायसरॉय लॉर्ड लिटन ने वर्नाक्युलर ऐक्ट नाम का एक क़ानून पास किया, जिसके तहत प्रेस की आजादी को भंग कर दिया गया था.
विदेशी अखवारों को छोड सभी अखवारों पर वेन लग गया था
ज्योतिबा का संगठन सत्य शोधक समाज दीनबंधु नाम का एक समाचार पत्र निकालता था.
ये अखबार भी इस क़ानून की चपेट में आया.
६.१४. बिना पुरोहित के विवाह-संस्कार
एक परिवार में शादी होने वाली थी.पुरोहितों ने घर आकर डराया कि-
बिना ब्राह्मण एवं संस्कृत मंत्रों के हुआ विवाह ईश्वर की दृष्टि में अशुभ माना जाएगा. उसके अत्यंत बुरे परिणाम होंगे.
गृहिणी सावित्रीबाई फुले को जानती थी. फुले को पता चला तो उन्होंने सत्य शोधक समाज के बैनर तले विवाह संपन्न कराने का ऐलान कर दिया.
सैकड़ों सदस्यों की उपस्थिति में वह विवाह खुशी-खुशी संपन्न हुआ.
एक अन्य घटना में
पुरोहितों ने घुड़सवार भेजकर दूल्हे के पिता को धमकी दी.
लोगों को यह कहकर भड़काया कि फुले उन्हें ईसाई बनान चाहते हैं.
लेकिन फुले इन धमकियों से कहां डरने वाले थे?
अप्रिय घटना से बचने के लिए उन्होंने प्रशासन से मदद मांगी.
पुलिस की निगरानी में वह विवाह सफलतापूर्वक संपन्न हो सका
ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली।
६.१५.
गरीब किसानों के हक में भी आवाज उठाई
ज्योतिबा के जीवन में ऐसा मौका भी आया जब पिछड़ों के साथ साथ उन्होंने गरीब किसानों के हक में भी आवाज उठाई.
ज्योतिबा फुले के एक दोस्त थे हरि रावजी चिपलुणकर. उन्होंने ब्रिटिश राजकुमार और उसकी पत्नी के सम्मान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया.
ब्रिटिश राजकुमार महारानी विक्टोरिया का पोता था. उस कार्यक्रम में ज्योतिबा फुले भी पहुंचे.
कार्यक्रम में उन्होंने किसानों जैसे कपड़े पहने ताकि उनकी भाषा में ही वो किसानों का दर्द बयान कर सके.
उन्होंन मौके पर मौजूद गणमान्य हस्तियों को चेताते हुए कहा कि ये जो धनाढ्य लोग हैं, वे भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं.
अगर राजकुमार वाकई में भारतीय प्रजा की स्थिति जानना चाहते हैं
तो वह आसपास के गांवों का दौरा करें.
उन्होंने राजकुमार को उन शहरों में भी घूमने का सुझाव दिया जहां वे लोग रहते हैं जिनको अछूत समझा जाता है,
जिनके हाथ का पानी पीने, खाना खाने, जिसके साथ खड़े होने पर लोग खुद को अपवित्र मानने लगते हैं.
उन्होंने राजकुमार से आग्रह किया कि वह उनके संदेश को महारानी विक्टोरिया तक पहुंचा दें
और गरीब लोगों को उचित शिक्षा मुहैया कराने का बंदोबस्त करें
७. महात्मा फुले ने दूसरी शादी से क्यों मना किया
ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले को संतान नहीं हो रही थी.
तो उनके घर वाले उनके वंश को लेकर चिंतित हो गए. तो एक रोज़ उन्होंने ज्योतिबा को बुलाया और बोले कि वो दूसरी शादी कर लें
क्योंकि सावित्री बाई से उन्हें संतान का सुख नहीं मिलने वाला.
उस वक्त ज्योतिबा ने अपने परिजनों से कहा था कि
संतान के सुख के लिए सिर्फ सावित्री को दोष नहीं दिया जा सकता.
मैं भी उसका हकदार हो सकता हूँ.
ज़रूरी ये नहीं कि महिला के कारण ही संतान से हम वंचित रहें,
पुरुष में भी कोई रोग हो सकता है जिस कारण दोनों को संतान न हो.
अगर मुझे वो रोग हुआ और मैंने दूसरी शादी कर ली और संतान की प्राप्ति फिर भी न हुई तो.
इसके बाद उन्होंने कहा कि वो सावित्री के साथ खुश हैं और केवल वही उनकी पत्नी रहेंगी.
८. आनुपातिक प्रतिनिधित्व की माँग
1882 – हण्टर आयोग की नियुक्ति हुई।
महात्मा ज्योतिराव फुले ने
१. नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा
२. सरकारी नौकरियों
में सभी के लिए आनुपातिक आरक्षण/प्रतिनिधित्व की माँग की
९. महात्मा फुले के विचार
९.१. टॉप 10 Mahatma Jyotiba Phule Quotes in Hindi
- “ईश्वर एक है और वही सबका कर्ताधर्ता है।”
२ “परमेश्वर एक है और सभी मानव उसकी संतान हैं।”
३ “शिक्षा स्त्री और पुरुष की प्राथमिक आवश्यकता है।
४ “भगवान और भक्त के बीच मध्यस्थता की कोई
आवश्यकता नहीं है।”
५ “स्त्री और पुरुष समान हैं।”
६ “सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए।”
७ “सभी जीवों के प्रति दया और करुणा रखनी चाहिए।”
८ “सामाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्ष करना
चाहिए।”
९ “स्वार्थ अलग-अलग रुप धारण करता है। कभी जाति
का , तो कभी धर्म का।”
१० “आर्थिक विषमता के कारण किसानों का जीवन
स्तर अस्त व्यस्त हो गया है।”
९.२. विद्यार्थियों के लिए Mahatma Jyotiba Phule Quotes in Hindi कुछ इस प्रकार हैं-
“शिक्षा ही व्यक्ति और समाज का उत्थान कर सकती है।”
“ज्ञान के बिना कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं हो सकता है।”
“सच्ची शिक्षा दूसरों को सशक्त बनाने और दुनिया को उस दुनिया से थोड़ा बेहतर छोड़ने का प्रतीक है जो हमने पाया।”
- १. विद्या बिना मति गयी,
- २. मति बिना नीति गयी,
- ३. नीति बिना गति गयी,
- ४. गति बिना वित्त गया,
- ५ वित्त बिना शूद गये,
इतने अनर्थ, एक अविद्या ने किये।”
शिक्षा महत्वपूर्ण है।”
“अनपढ़, अशिक्षित जनता को फंसाकर वे अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं और यह वे प्राचीन काल से कर रहें हैं। इसलिए आपको शिक्षा से वंचित रखा जाता है।”
९.३. Mahatma Jyotiba Phule Motivational Quotes in Hindi
- आपके संघर्ष में शामिल होने वालों से उनकी जाति मत पूछिए।
- अगर कोई आपको किसी भी प्रकार का सहयोग देता है, तो उससे कभी भी मुंह मत मोड़िए।
- अच्छा काम करने के लिए गलत उपयों का सहारा नहीं लेना चाहिए।
- परमेश्वर एक है और हम सभी मानव उनकी ही संतान हैं।
- इस बात को कभी न भुलाए कि ईश्वर एक है और वही हम सबका कर्ताधर्ता है।
९.४. महात्मा ज्योतिबा फुले के सामाजिक विचार
- जाति या लिंग के आधार पर किसी के साथ भेदभाव करना पाप है।
- अच्छा काम करने के लिए गलत उपयों का सहारा नहीं लेना चाहिए।
- भगवान और भक्त के बीच मध्यस्थता की कोई आवश्यकता नहीं है।
- अगर कोई किसी प्रकार का सहयोग करता है, तो उससे मुंह मत मोड़िए।
- संसार का निर्माणकर्ता एक पत्थर विशेष या स्थान विशेष तक ही सीमित कैसे हो सकता है?
- समाज के निम्न वर्ग तब तक बुद्धि, नैतिकता, प्रगति और समृद्धि का विकास नहीं करेंगे जब तक वे शिक्षित नहीं होंगे।
- भारत में राष्ट्रीयता की भावना का विकास तब तक संभव नहीं है, जब तक खान–पीन एव वैवाहिक संबंधों पर जातीय भेदभाव बने रहेंगे।
“यदि आजादी, समानता, मानवता, आर्थिक न्याय, शोषणरहित मूल्यों और भाईचारे पर आधारित सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना है, तो असमान और शोषक समाज को उखाड़ फेंकना होगा।”
“पृथ्वी पर उपस्थित सभी प्राणियों में मनुष्य श्रेष्ठ है और सभी मनुष्यों में नारी श्रेष्ठ है। स्त्री और पुरुष जन्म से ही स्वतंत्र है। इसलिए दोनों को सभी अधिकार समान रूप से भोगने का अवसर प्रदान होना चाहिए।
१०. सच को कहने का एक तरीका अनुभव
संस्कृत का एक श्लोक है, एकम सत विप्रा, बहुदा वदन्ति. यानी सच एक है और ज्ञानी लोग उसे अलग अलग प्रकार से कहते हैं. सच को कहने के इन तरीकों में से एक तरीका ऐसा है, जो सिर्फ अनुभव द्वारा ही कहा जा सकता है.
जाहि बीती सो जाने-
यानी ऐसा सच जो जिस पर बीता है, वो ही जान सकता है.
जातिवाद ऐसा ही एक सच है.
जाति जो कभी नहीं जाती-
स्वदेश पिक्चर का ये डायलॉग याद होगा आपको. फिर ये भी सुना होगा कि जातिवाद पुराने ज़माने की बात है.
खैर ये पुराने जमाने की बात थी, या इस जमाने की भी है, ये तो बहस का विषय है.
लेकिन पुराने जमाने में भी जातिवाद का मतलब क्या था, इसका लेखा जोखा किया जाना भी अब तक बाकी है.
११. जाति का मतलब सवर्णो से दूरी
भारत के सामाजिक क्रांतिकारी’ नाम की एक किताब है. इसे देवेंद्र कुमार बेसंतरी ने लिखा है.
बेसंतरी केरल में जाति का गणित समझाते हैं.
केरल में पिछड़ा होने का मतलब होता था कि
नंबूदरी, ब्राह्मण, नायर जैसे सवर्णों से आपको 32 फ़ीट की दूरी रखनी होती थी. इससे नजदीक आए तो वो अपवित्र हो जाते थे.
आगे और भी लेवल थे. इससे ऊपर नायर इढ़वा थे, जिनसे 64 फ़ीट की दूरी बनाकर रखनी होती थी.
और इससे भी आगे थे इढ़वा जाति के लोग, जिनसे 100 फ़ीट की दूरी बनाकर रखनी होती थी.
१२. मोत को बुलाव देना
पिछड़ों को रास्ते में चलते हुए ये ध्यान रखना होता था कि
किसी ऊंची जाति वाले पर परछाई न पड़ जाए.
दिन का वो समय जब परछाई लम्बी होती थी, तब सड़क पर चलने का मतलब था
मौत को बुलावा देना. ऐसे में पिछड़ों को इस समय सड़क से दूर होकर बैठना पड़ता था.
१२.१. काला धागा
अछूतों को आदेश था कि
अपनी कलाई में या गले में काला धागा बांधे,
ताकि हिन्दू इन्हें भूल से ना छू लें,
१२.२. कमर में झाडू
कमर में झाड़ू बांधकर चलें,
ताकि इनके पैरों के निशान झाड़ू से मिट जाएं.
और कोई हिन्दू इनके पद चिन्हों पर पैर रखकर अपवित्र न हो जाएं.
१२.३. गले में हण्डी
अगर मुंह थूक से भर जाए तो
थूकने के लिए मिट्टी के किसी एक बर्तन को रखना पड़ता था.
जिसको गले में टांग कर चलना पडता था
जो कभी नही जाती है उसी काे जाति कहते हैं
१३. ज्योतिबा की हत्या की कोशिश
एक बार आधी रात के वक़्त जब ज्योतिबा सो रहे थे,
दो लोग उनके घर में घुसे.
ज्योतिबा की नींद टूटी. उन्होंने आवाज लगाकर पूछा , कौन है.
इस पर एक आदमी बोला,
‘हम तुम्हें यमलोक भेजने के लिए आए हैं‘
ज्योतिबा ने पूछा,
मैंने तुम लोगों का क्या बिगाड़ा है?
इस पर उनमें से एक ने जवाब दिया,
बिगाड़ा कुछ नहीं, लेकिन तुम्हे मारने से हमें हजार रूपये मिलेंगे
ये सुनकर ज्योतिबा ने कहा,
इससे अच्छा क्या हो सकता है कि मेरी जिंदगी दलितों के काम आए और मेरी मौत से कुछ गरीबों का भला हो जाए.
ये सुनकर दोनों हमलावर ज्योतिबा के पैरों में गिर गए और उनसे माफी मांगी.
इनमें से एक का नाम रोडे
और दूसरे का नाम था पं. धोंडीराम नामदेव.
दोनों आगे जाकर ज्योतिबा के सहयोगी बने
और उनके साथ मिलकर सत्य शोधक समाज का काम संभाला.
१४. निष्कर्ष:
जब तक सभी जातियों को सभी क्षेत्रों में समान भागीदारी नहीं मिलती, तब तक समाज में वास्तविक समानता प्राप्त नहीं की जा सकती।
सभी क्षेत्र में जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने और ब्राम्हणों के वर्चस्व को तोड़ने के लिए समग्र और सतत प्रयासों की जरूरत है। इसके लिए कानूनी सुधार, शिक्षा, राजनैतिक और सामाजिक जागरूकता अभियान आवश्यक हैं।
१५. मृत्यु:
63 साल तक पिछड़ों और दबे कुचले वर्ग के लिए लगातार आवाज उठाने के बाद 28 नवंबर 1890 को महामना ज्योतिबा फुले की मृत्यु हो गई.
आख़िरी समय1888 में उन्हें लकवा मार गया था. ज्योतिबा अधरांग हो गए
ते जाते भी उन्होंने इस बात का ध्यान दिया कि व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से बढ़ा होता है.
अपनी वसीयत में उन्होंने लिखा कि
अगर उनका बेटा यशवंत आगे जाकर नालायक हो जाए, या बिगड़ जाए तो उनकी संपत्ति किसी पिछड़े तबके के लायक बच्चे को दे दी जाए.
महात्मा फुले ने अपना जीवन महिलाओं, वंचितों और शोषित वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित किया था
.
उनके निधन के बाद सावित्री बाई फुले ने मशाल थामी तो फिर उसकी लौ धीमी नहीं पड़ने पाई
ज्योतिबा फुले के मरने के बाद उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने सत्य शोधक समाज के काम को आगे बढ़ाया.