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जातिगत जनगणना क्यों जरूरी है? 1931 के बाद क्‍यों नही हुई जातिगत जनगणना?

Table of Contents

जातिगत जनगणना क्यों जरूरी है?

क्या हम जानते हैं ? कि इस देश में 90 फ़ीसदी  हिंदू समुदाय के लोग रहते हैं हिन्दुओं  का सामाजिक जातिगत्त स्ट्रक्चर को समझते है।

ब्राह्मण जाति नही वर्ण है

ब्राह्मणों में जो जातियां होती हैं त्यागी,  वाजपेयी, मिश्रा, कानकुब्‍ज, त्रिवेदी, चतुर्वेदी, समपथ ब्राम्‍हण, सारस्‍वत, मैथिल, चौबे, पचौरी, शर्मा, दुबे, आदि जो जातियां हैं इनका आपस में रोटी बेटी का संबंध है इसलिए यह जाति नहीं है वर्ण है और इस प्रकार  ब्राह्मण वर्ण में जो जातियां हैं उनमें आपस में रोटी बेटी का संबंध हैं .

क्षत्रिय जाति नही वर्ण है

इसी तरह क्षत्रियों में कछवाह, राठौर, सिकरवार, सिसोदिया, तोमर, भदौरिया, सोलंकी, परिहार, चौहान आदि में रोटी बेटी का संबंध है तो वह क्षत्री वर्ण है तो वर्ण में जातियां आपस में रोटी बेटी का संबंध करती हैं

वेश्‍य जाति नही वर्ण है

इसी तरह से बनियों में देखते हैं अग्रवाल,  जायसवाल,  गुप्‍ता, केसरवानी, जिंदल, मोदी, हलवाई और बंसल आदि, इनका भी आपस में रोटी और बेटी का संबंध है वेश्‍य एक वर्ण है वेश्‍यों वर्ण की जातियों में आपस में रोटी और बेटी का संबंध स्‍थापित है.

शूद्रों के खिलाफ लामबंद

ब्राम्‍हण, क्षत्रिय, वेश्‍य में आपस में रोटी का संबंध है. इसलिए शूद्रों की जातियां अपने हक मांगती हैं तो ये तीनों वर्ण शद्रों के खिलाफ लामबंद हो जाते हैं.

शूद्र जाति नही वर्ण है

चौथा वर्ण शूद्र में अगर हम देखते हैं तो शूद्र बहुत सारी जातीय में बैठा हुआ है शूद्रों में रोटी बेटी का संबंध टूटा हुआ है एक दूसरे को अपने जाति में ही ऊंचा नीचा कहते रहते हैं

शूद्र तीन वर्णों में विभाजित

शूद्र संविधान के अनुसार तीन वार्गों एससी, एसटी, और औबीसी में बटा हुआ है. तीनो बर्गो में में बहुत सारी जातियां है और तीनो वर्ग कई हजार जातियों में बटे हुए हैं. इनमे रोटी का संबंध टूटा हुआ है. इसी तरह बेटी का कोई संबंध नहीं हैा

 एक दूसरे को अपने जाति में ही ऊंचा नीचा कहते रहते हैं हम एक जाती का उदहारण लेते है जैसे

अन्‍य पिछडा वर्ग जाति नही वर्ग है

पाल वर्ग नही जाति है

जैसे पाल, धारिया, गडरिया, धनगर, बधेल, हटगर, गडारी, गादरी आदि अलग अलग उप जाती है इनका में आपस में रोटी बेटी का संबध नही है

लुहार वर्ग नही जाति है

इसी तरह से लुहार, लोहार, लोहपीटा, गडोले, लेहपाटा, लोहपेटा, विश्‍वकर्मा, गडेला आदि इनमे जो उपजातियां  है उनमे भी आपस में रोटी बेटी का संबंध नही है. वो एक दूसरे को जाती में ऊचा नीचा कहते रहते हैा

काछी वर्ग नही जाति है

काछी, कुशवाह, कोयरी, मोर्या, शाक्‍य, मरई, पनारा, सोनकर में भी आपस में रोटी बेटी का संबध नही है. वो एक दूसरे को जाती में ऊचा नीचा कहते रहते हैा

अनुसूचित जाति, दलित जाति नही वर्ग है

दोहरे, जाटव, अहिरवार वर्ग नही जाति है

इसी तरह से एससी में भी दोहरे, जाटव, अहिरवार  में भी आपस में रोटी और बेटी

का सम्बन्ध नहीं है ये भी आपस में एक दूसरे को उचा और नीचा कहते रहते हैा

निषाद, निसाद, मछुआरे वर्ग नही जाति है

इसी तरह से निषाद, निसाद, मछुआरे इनमे भी आपस में रोटी और बेटी का सम्बन्ध नहीं है  यह एक दूसरे को ऊंचा और नीचा कहते रहते हैं

अनुसूचित जन जाति नही वर्ग है

गोड़,  राजगॉड,   नन्दगॉड, सोरगॉड, कुवांदर वर्ग नही जाति है

आदिवासियों में जाकर हम देखे गोड़,  राजगॉड,   नन्दगॉड, सोरगॉड, कुवांदर ये भी आपस में जातियों में बठे हुए हैं  इनमे भी आपस मे रोटी और बेटी का सम्बंद नहीं हैा

सूद्र पहले तो जातियों में बाटी हुए है और जातियों के बाद भी फिर उपजातियां में बठे हुए है उपजातियां में कोई रोटी बेटी का संबंध नहीं है

 जबकि ऊपर के जो तीन वर्ण कहलाते है ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य में आपस में वर्ण में तो रोटी बेटी का संबंध है और तीनों वर्णों में रोटी का संबंध है

ब्राह्मण  छत्री  के यहां खा  सकता है क्षत्रिय ब्राह्मण के यहाँ एवं ब्राह्मण बनिया के साथ उनका रोटी का संबंध जुड़ा हुआ हैा

इस तरह वो शादी समारोह में वो तीनो इकट्ठे होते हैं

और शूद्रों के खिलाफ कोई बात आती है तो उसके लिए वो तीनो इकट्ठे होते है

ब्राह्मण को मनु विधान के अनुसार शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार है

छत्री को शास्त्र संपत्ति रखने का अधिकार है

वानिया को व्यापर करने का अधिकार है

और शूद्र को सिर्फ सेवा करने का अधिकार है

मनुस्मृति के अनुसार सूद्र अगर संपत्ति रखता है तो उसको छीन लिया जाए

उसे संपत्ति रखने का अधिकार नहीं है शिक्षा ग्रहण करता है तो उसके कानो में शीशा पिघला कर डाल दिया जाय, स्वच्छा कपडे नहीं पहन सकता है इस तरह से उसमे भी छुआ चूत है सूद्र उप जातियों में भी बाटे हुए है और इनमे आपस में भी इतनी छुआ छूत है

यानि जो 85% जो कहलाता है उसमे आज की तारीख में अगर हम देखें तो लगभग 1000 जातियों में बांटा हुआ है

८५ में एक हजार का भाग दे तो ०.०८५ बचती है एक एक जाती की तागत बचती है

जो लोग जाती संगठन बना कर चलाते हैं

वह कहते हैं कि हम जाती इकट्ठी करके और जाति आगे बढ़ जाएगी

इतना कमजोर, इतनी काम तागत कैसे आगे बड़ सकती है

जातियों के नाम से तागत इतनी कम कर देंगे तो जाती कैसे आगे बड़ सकती है

जातियों के नाम से तागत और कमजोर करते जा रहे है

वो इकट्ठे है १५ , शादी समारोह में इकट्ठे होते हैं उनमें खाने-पीने का आपस में व्यवहार है वो तीनो इकट्ठे है

आप जातियों में बटके और उप जातियों में बट जाते है तो और तागत घट जाती है  और उस पूरी ताकत से जो हमारे पूरे संसाधनों को छीन हुए हैं प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा किए हुए सत्ता पर कब्ज़ा किये हुए है उससे हम सत्ता और संसाधन लेना चाहते हैं

अगर हम ऐसी जातियों में बाटे रहेंगे और जातियों में बटके हम कुछ चाहेंगे कि हम उन्नति कर लें, शासन सत्ता प्रशासन उद्योग व्यापर में भागीदारी ले लें , तो ये संभव नहीं है एक एक जाती नहीं कर सकती है जब तक पूरी जातियों के लोग इकट्ठे नहीं होंगे

तो आप देखेंगे की जो ऊपर की जो जाती कहलाती है अगड़ी जाति वो जाती बता कर सम्मान मिलता है यानि सम्मान लेने के लिए जाती गर्व से बताते है हम इस जाती के है उससे उन्हें सम्मान मिलता है

दूसरी तरफ  शूद्रों की जो जाती है वो जाती छुपाते है क्योंकि उन्हें जाती बताने से अपमान मिलता है  वो जाती छुपाते है वो जाती का नाम बदलकर सर नेम बदलकर सम्मान पाने के लिए काम करते है

तो जनगणना का फॉर्मेट है वह सरकार कैसे तैयार करती है जितने भी सरकार के डिपार्टमेंट है वो सभी सरकार के डिपार्टमेंट की मीटिंग होती है और मीटिंग में सारे डिपार्टमेंट से पूछा जाता है कि किसी को किस तरह के आंकड़ों की जरूरत है तो उसके बाद है जनगणना का एक फॉर्मेट बनता है  जिससे जनगणना में आंकड़े इकट्ठे किए जाते है

दूसरी तरफ  शूद्रों की जो जाती है वो जाती छुपाते है क्योंकि उन्हें जाती बताने से अपमान मिलता है  वो जाती छुपाते है वो जाती का नाम बदलकर सर नेम बदलकर सम्मान पाने के लिए काम करते है

तो जनगणना का फॉर्मेट है वह सरकार कैसे तैयार करती है जितने भी सरकार के डिपार्टमेंट है वो सभी सरकार के डिपार्टमेंट की मीटिंग होती है और मीटिंग में सारे डिपार्टमेंट से पूछा जाता है कि किसी को किस तरह के आंकड़ों की जरूरत है तो उसके बाद है जनगणना का एक फॉर्मेट बनता है  जिससे जनगणना में आंकड़े इकट्ठे किए जाते है.

२०२१ जो जनगणना होनी थी उसके फोर्मेट में ३४ कॉलम है

11   सवाल परिवार से जुड़े हुए हैं

१.   परिवार के मुखिया का नाम

२.   धर में कितने लोग हैं

३.   क्‍या मुखिया – अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन जाति या अन्य समुदाय से  है

४.   स्त्री पुरुष की संख्या

५.   तृतीय लिंग की संख्‍या

६.   विवाहित दंपत्ति कितने हैं

७.   कमरों की संख्‍या

८.   पेयजल का मुख्‍य श्रोत

९.   सौचालय की सुलभता

१०.                     प्रकाश का मुख्‍य श्रोत

११.                     पेय जल की उपलब्‍धता

पांच सवाल टॉयलेट से जुड़े है

१२.                     मकान में शौचालय है या नही

१३.                     गंदे पानी की निकासी किससे जुडी है

१४.                     स्‍नान घर है या नही

१५.                     रसोई घर और एलपीजी/पीएनजी गैस कनेक्‍शन

१६.                     खाना पकाने के लिए प्रमुख इधन

तीन सवाल वाहन, मोवाइल के

१७.                     घर में वाहन के नाम पर साइकिल, स्‍कूटर, मोटर, साईकिल, मोपेड में क्‍या है

१८.                     कोई कार, जीप, वेन है या नही

१९.                     मोवाइल नंबर

पांच सवाल संचार माध्‍यम से जुडे हैं

२०.                     घर में रेडियो,  ट्रांजिस्टर है या नहीं

२१.                      क्या कोई टेलीविजन है

२२.                     क्या इंटरनेट सुविधा है

२३.                     लैपटॉप चलते हैं या कंप्यूटर

२४.                     घर में कोईबेसिक टेलीफोन, मोबाइल या स्मार्टफोन में से कुछ है

या नहीं

दस सवाल घर के बरे में

२५.                     लाइन संख्या

२६.                     बिल्डिंग नंबर

२७.                     मकान नंबर

२८.                     मकान के फर्स,

२९.                      दीवार और

३०.                     छत में प्रयुक्‍त सामग्री  

३१.                     मकान का उपयोग

३२.                     मकान की स्वामित्व की स्थिति

३३.                     मकान का निर्माण किस उद्देश्य से हो रहा है

३४.                     मकान की स्थिति/कण्‍डीशन कैसी है

शासन की योजना-

अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों के मोहल्ले में हेड पंप लगाने की, फर्श करने की योजना आई, उस मोहल्ले के नाम से और पता चला कि वह लग गया सामान के मोहल्ले में, विकास का पैसा आता कही ओर के लिए है और विकास का पैसा चला कहीं और जाता है क्योंकि सामान्‍य की शासन प्रशासन में भागीदारी है

इसलिए अनुसूचित जाति जनजाति नाम से जो योजना आती है उसके शासन प्रशासन में भागीदारी नहीं है इसलिए वह योजना अनुसूचित जाति जनजाति तक नहीं पहुंच पाती है यही स्थिति पिछडी जातियों की हैा

धर्म परिवर्तन

हिंदू जाति व्‍यवस्‍था से जो पीड़ित लोग थे उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन किया तो धर्म परिवर्तन करके भी जाति ने पीछा नही छोडा, जाति वहां भी साथ चली गई.

जाति से मुक्ति पाने के लिए लोग मुस्लिम बने, सिख्‍ख बने, इसाई बने, बौद्व बने वहां भी जाति साथ चली गई. उन धर्मो मे जाति व्‍यवस्‍था नही है लेकिन हिंदू धर्म से धर्म परिवर्तन करके जो लोग गये उनके साथ जाति भी चली गई. इसलिए उन धर्मो में भी जाति व्‍यवस्‍था उत्‍पन्‍न्‍ हो गई.

धर्म बदला लेकिन जाति नही बदली, जाति का नाम बदल गया.

‘जाति है कि जाती नही’

१.     नाम के साथ जाति जुडी है

२.    जाति प्रमाण पत्र सरकार जारी करती है

३.    संगठनों का पंजीयन सरकार करती है

४.   जाति में शादी में वहां करते हैं

५.   जाति के नाम से राजनीतिक पार्टियों टिकट देती है

६.    जाति के नाम से लोग हम लोग वोट देते हैं

७.   जाति के नाम से सम्मान व अपमान मिलता है

८.    जाति के नाम से साक्षात्कार में नंबर मिलते हैं

९.    जाति के नाम से पीएचडी आदि उच्च शिक्षा में अगर पंजीयन करना चाहो तो पंजिया कराने में असुविधा होती है अगर कोई अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन जाति का या पिछडी जाति का है तोउसको डिग्री लेना मुश्किल हो जाती है.

१०.                        जाति के आधार पर उच्‍च पदों पर कार्य करने का अवसर मिलता है

११.      जाति के आधार पर न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है

१२.                       जाति के आधार पर शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति होती है

१३.                       जिस जाति की संख्या कम है उसे जाति को राजनीति में अभी तक

भागीदारी नहीं मिल पाई है

जातिगत जनगणना

आखरी बार जाति जनगणना कब हुई 1931 में जाति का जनगणना हुई और इस 1931 की जाति के जनगणना के आंकड़े को सरकार अभी तक उपयोग करती जा रही है तो जिसको 90 साल से ज्यादा गुजर गए वह आंकड़े क्या प्रासंगिक है

क्या आज की योजनाओं के लिए आज की जो परिस्थिा है

सरकार की स्कीमों को लागू करने के लिए, बजट पारित करने के लिए आज के आंकड़ों की जरूरत  होती है जब तक वर्तमान के आकडे नहीं आएंगे तब तक कैसे मालूम चलेगा किस जाति के लिए किस तरह की स्कीम की जरूरत है और कितने बजट की जरूरत है

१९४१ में जातिगत जनगणना हुई लेकिन दुतीय विश्‍व युद्व के कारण आंकडे जारी नही हुए थे

 1948 में सेंसस एक्ट बना और १९५० में तत्‍तकालीन कांग्रेस की सरकार ने जातिगत जनगणना कराना बंद कर दी. 1951 में बिना जाति के आधार की जनगणना  हुई थी

1953 में काका कालेलकर आयोग

1953 में काका कालेलकर आयोग का गठन हुआ १९५१ मे जातिगत जनगणना नही हुई थी इसलिए काका कालेलकर आयोग को रिपोर्ट तैयार करने के लिए तत्‍कालीन आंकडे उपलब्‍ध नही थे इसलिए १९३१ के जातिगत जनगणना के आंकडों आधार पर रिपोर्ट तैयार की. जिसमें सिफारिस की १९६१ की जनगणना जाति की आधार पर हो.

राष्‍ट्रीय पिछडा वर्ग आयोग

राष्‍ट्रीय पिछडा वर्ग आयोग बना है जिसका काम है कि जो संविधान के अनुच्‍छेद 340 के तहत ओबीसी की जातियों की सूची है और अनुच्‍छेद 341 के तहत अनुसूचित जाति की सूची और अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति की सूची है उनका प्रत्‍येग १० वर्ष में पुनरीक्ष्‍ण करे.

 उन सूचियां में से कोई जाति, अनुसूचित जाति की निर्धारित मांपदण्‍डो के आधार पर अनुसूचित जन जाति या ओबीसी की सूची में सामिल हो सकती है

इसी तरह अनुसूचित जन जाति से कोई जाति निर्धारित मांपदण्‍डो के आधार पर अनुसूचित जाति या ओबीसी की सूची में सामिल हो सकती है

इसी तरह अन्‍य पिछडा वर्ग की जाति से कोई जाति निर्धारित मांपदण्‍डो के आधार पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जन जाति की सूची में सामिल हो सकती है.

प्रत्‍येक १०वर्ष में नई सूची बनती है और सूची के आधार पर किस जाति की कितनी संख्या है जिसके आधार पर आरक्षण की सीमा निर्धारित होती है जिस प्रकार १९३१ के आकडों के आधार पर  15% एसटी के लिए, ७.५ परसेंट एसटी के लिए निर्धारित है और ओबीसी के लिए १९३१ की जनगणना के अनुसार ५२ प्रतिशत होना चाहिए जो आज तक नही हो पाया है अलग अलग राज्‍य अलग अलग सीमा निर्धारित किये हुए है

१९३१ के आंकडों के आधार पर संविधान लागू होने के समय जो निर्धारित हो गया था वही आज तक चला आ रहा है उस समय जो जातिया  सूची में शामिल नहीं हो पाई थी वह आज भी सूची मे सम्मिलित नही है जब कि उनकी दयनीय स्थिति बहुत खराव हो चुकी है लेकिन जातिगत जनगणना नही हो पाने के कारण उसको कोई लाभ नही मिल पा रहा है और ना ही सरकार ऐसी अति पिछडी जातियों के लिए कोई विशेष प्रावधन कर उन्‍हे मुख्‍य घारा में लाने के लिए कोई प्रयास कर रही है. जिन जातियों को लाभ मिलता आ रहा है वह निर्धारित मापदण्‍डों से आगे भी बढ चुकी होगी लेकिन वह आज भी लाभ लेती आ रही हैं

जैसे मणिपुर में जिस जाति ने बरसों से अनुसूचित जन जाति की सूची में सम्मिलित होने की. दूसरी जातियां जो अनुसूचित जन जाति में पहले से सम्मिलित थी उन्‍हे लगा कि वह उनका हक छीन रही है अगर सरकार स्‍वम जातिगत जनगणना करवा कर उन्‍हे अनुसूचित जन जाति की सूची मे सामिल कर देती तो मणिपुर में आपस में जातीय वेमनश्‍यता पैदा नही होती.

प्रत्‍येक १० वर्ष में जातिगत जनगणना के आंकडों के आधार पर रा‍ष्‍ट्रीय पिछडा वर्ग आयोग रिपोर्ट तैयार कर सरकार को दे और सरकार महामहिम राष्‍ट्रपति महोदय को दे, राष्‍ट्रपति महोदय रिपोर्ट की सिफारिसों के आधार पर विशेष पिछडी जातियों के लिए विशेष प्रावधान लागू कर उनको विकास की मुख्‍य धारा में लाने का प्रयास किया जाय. जातिगत जनगणना नही होने से कई जातियां अपने हक अधिकारों से बंचित है उनकी स्थिति और दयनीय होती जा रही है

जातिगत जनगणना की मांग ११ वी पंचवर्षी में योजना आयोग ने भी की, संयुक्त राष्ट्र ने भी कहा कि जाति का जनगणना कराई जानी चाहिए, मद्रास हाईकोर्ट ने दो बार कहा कि जाति के जनगणना होनी चाहिए. सभी सामाजिक संगठन मांग कर रहे हैं पूरे देश के जाति का जनगणना होनी चाहिएले

 जातिगत जनगणना कौन करा सकता है

तीन विषय सूची होती है

१.   केन्‍द्रीय विषय सूची

२.   राज्‍य विषय सूची

३.   समवर्ती विषय सूची

समवर्ती विषय सूची में सम्मिलित विषयों पर केंद्र सरकार और राज्‍य सकरका दोनो ही कानून बना सकती है लेकिन केन्‍द्रीय विष्‍य सूची के विष्‍यों पर केंद्र सरकार ही काम कर सकती है कानून बना सकती है  राज्य विषय सूची में जो विषय है उन पर राज्‍य सरकार काम कर सकती है कानून बना सकती है.

जातिगत जनगणना संविधान के अनुच्‍छेद २४६ के तहत संध सूची ७ वी सूची के ६९ नंबर पर है जिस पर सिर्फ केन्‍द्र सरकार ही काम कर सकती है कानून बना सकती है राज्‍यों को जातिगत जनगणना कराने का अधिकार ही नही है राज्‍य केवल जातिगत सर्वेक्षण करवा सकते है जिससे पैसे की वर्वादी के अलाव और कुछ नही है क्‍यों कि उन आंकडों पर केन्‍द्र सरकार काम करने के लिए बाध्‍य नही है और ना ही राज्‍य सरकार वाध्‍य हैं.

जनगणना अधिनियम 1948 उसके तहत भारत सरकार के ग्रह मंत्रालय के अंतर्गत आता है ग्रह मंत्रालय के अंतर्गत१९६१ में सेसस डिपार्टमेंट की स्‍थापना की . जो राजिस्‍ट्रार जनरल एवं सेसस कमिश्‍नर के नियंत्रण में कार्य करता है जो जतिगत जनगणना करा सकता है जिसके आंकणों को केन्‍द्र एवं राज्‍य सरकारे मानने के लिए वाध्‍य होती हैं.

केन्‍द्र सरकार इंडियन स्टैटिसटिकल ऑर्गेनाइजेशन आदि से तो सेम्‍पल सर्वे करवाती है 2011 में केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना करवाई थी लेकिन सेंसस एक्‍ट के अंतर्गत नियम‍त होने वाली जनगणना के साथ नही करवाई थी जो जनगणना अधिनियम के दायरे में नहीं थी इसलिए उसके आंकडे आज दिनांक तक जारी नही किये गये हैं

2011 की जातिगत जनगणना जनगणना, जनगणना अधिनियम १९४८ के अंतर्गत नियमित होने वाली जनगणना के साथ में कार्रवाई होती तो केंद्र सरकार को वह आंकड़े जारी करने को उसके आंकडे देना पड़ता और उसे पर काम करने के लिए वाध्‍य होना पडता.  जातिगत जनगणना में जातियों के हिसाब से पूरी जानकारी आ जाएगी इससे पूरे देश का असली चरित्र सामने आएगा.

२०२१ की जनगणना

हम चाहते हैं कि जो 2021 में जो जनगणना होने वाली है अब आगे जब भी होगी जो नहीं हो पाई है उनकी जाति पर कितने मकान है किस जाति में कितने पढ़े लिखे हैं किस जाति पर कितनी गाड़ीहै कि इससे पूरे देश का असली चरित्र सामने आएगा राष्ट्रीय स्तर पर समझने का मौका मिलेगा हम ठीक से समझ पाएंगे.

वर्तमान आंकडे हमारे पास होगें तो लोकतंत्र को लागू करना कर पाएंगे राजनीतिक औरप्रशासनिकों क्षेत्रों में सभी को अनुपात में प्रतिनिधित्व दे पाएंगे उसके लिए स्‍कीम बना पाएंगे, योजना बना पाएंगे.

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