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राजनीति में भागीदारी

१. मण्‍डल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार राजनीति में भागीदारी

२. आजादी के बाद राजनीति में भागीदारी कैसी होनी चाहिए थी 

३. वर्ष २०२४ की लोक सभा में बहुजन समाज की स्थिति

4. मनु व्‍यवस्‍था

५. मुस्लिम शासक

६.१ अंग्रेजों ने भारत पर 𝟙𝟝𝟘 वर्षों तक राज किया ब्राह्मणों ने उनको भगाने के

 लिए हथियार बन्द आंदोलन क्यों चलाया ?*

६.२ आरक्षण के जनक छत्रप्रति साहूू जी महाराज के सामाजिक न्‍याय के लिए प्रयास

६.३. साउथ ब्‍यूरो कमीशन

६.४. साइमन कमीशन

६.५ सरदार बल्‍लभ भाई पटेल 

७.१ गांधी अम्‍बेडकर समझौता से कैसे चुनना सुरू हुए गुलाम नेता ?

७.२ प्रथक निर्वाचन प्रणाली क्‍या होती है

७.३ अन्‍य पछिडा वर्ग को कुछ क्‍यों नही मिला? इसका कारण क्‍या है?

७.४ स्‍वतंत्र भारत कैसा होना था

७.५ स्‍वतंत्र भारत कैसा हो गया 

८. स्‍वतंत्र प्रतिनिधि और उसकी तागत

9 . चमचा युग

१० भारत में असमानता

११. बहुजन समाज का विभाजन 

१२. पार्टी सिस्‍टम क्‍यो लाया गया ?

१२.१ मानसिंग गुलाम

१२.२ भूसा भरा पडेउ

१२.३ वफादार कुत्‍ता  

१२.४ मधुमंख्‍खी 

१२.५ नेताओं का स्‍वागत

१३. पार्टीयां की फ्री की स्‍कीम

१४. ब्राम्‍हणों को पहचानने का तरीका

१५. निष्कर्ष:

१. मण्‍डल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार राजनीति में भागीदारी

२. आजादी के बाद राजनीति में भागीदारी कैसी होनी चाहिए थी

एसटी की आवादी ७.५ प्रतिशत को ७.५ प्रतिशत 

एससी की आवादी १५ प्रतिशत को १५ प्रतिशत 

अल्‍प संख्‍यक की आवादी १०.५ प्रतिशत को १०.५ प्रतिशत 

ओबीसी की आवादी ५२ प्रतिशत को ५२ प्रतिशत राजनीति में भागीदारी होनी चाहिए थी

३. वर्ष २०२४ की लोक सभा में बहुजन समाज की स्थिति

एसटी की आवादी ७.५ प्रतिशत की  राजनैतिक भागीदारी १० प्रतिशत तक हो गई

अल्‍प संख्‍यक की आवादी १०.५ प्रतिशत की  राजनैतिक भागीदारी ८ प्रतिशत हो गई

एससी की आवादी १५ प्रतिशत की  राजनैतिक भागीदारी १६ प्रतिशत हो गई

ओबीसी की आवादी ५२ प्रतिशत की  राजनैतिक भागीदारी २५ प्रतिशत हो गई

देखने के लिए तो ८५ प्रतिशत बहुजन समाज की भागीदारी २०२४ में लोक सभा मे ५९ प्रतिशत तक हो गई है 

लेकिन वह पार्टियों के गुलाम है इसलिए किसी काम के नही है

4. मनु व्‍यवस्‍था

सनातन धर्म हिंदू धर्म का ही वैकल्पिक नाम है जिसका उपयोग संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं में भी किया जाता है। वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिए ‘सनातन धर्म’ नाम मिलता है। ‘सनातन’ का अर्थ है – शाश्वत या ‘सदा बना रहने वाला’, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त।

ब्राम्‍हण धर्म को ही हिन्‍दू धर्म या सनातन धर्म कहते हैं इसका मतलब होता है, जिसमें ब्राम्‍हण सर्वश्रेष्‍ट बना रहे और एससी, एसटी, ओबीसी गुलाम बना रहे चतुवर्णीय व्‍यवस्‍था बनी रहे.

वर्तमान में इसे ब्राम्‍हणवाद, हिन्‍दूवाद, मनुवाद व गांधीवाद कहते है

इसके विपरीत विचारधारा को मानवता वाद, बुद्धवाद, अम्‍बेडकरवाद कहते है 

अंबेडकर के अनुसार शूद्र वे क्षत्रिय थे जो ब्राह्मणवाद से संघर्षरत थे। उन्होंने प्राचीन समाज में सत्ता संघर्ष की बारीकी से व्याख्या की है, जिसके परिणामस्वरूप शूद्रों को उपनयन से वंचित कर दिया गया और उन्हें चौथे वर्ण में डाल दिया गया (लेखन और भाषण, खंड 7, पृष्ठ 156-175)।

ब्राम्‍हण के लिए

मनु ने ब्राम्‍हण को १०० प्रतिशत आरंक्षण देकर सम्‍पत्ति व धन दौलत का स्‍वामी बनाया

बडे से बडे पाप दोष के लिए उसे म़त्‍यु दण्‍ड नही दिया जा सकता है 

पढना-पढाना, यज्ञ करना, दक्षिणा लेना, संस्‍कृति, विद्या का अध्‍यन करना, मंदिर देवताओं देवालयों की पूजा करना व करवाना ब्राम्‍हणों के लिए १०० प्रतिशत आरक्षित कर दिया गया

क्षत्रियों के लिए

प्रजा की रक्षा करना, युद्व करना, राज्‍य करना व सत्‍ता का उपयोग करना क्षत्रियों के लिए १०० प्रतिशत आरक्षित कर दिया गया

वेश्‍यों के लिए

पशुओं की रक्षा करना, कृषि कार्य व्‍यापार तथा ब्‍याज लेने का कार्य वेश्‍यों के लिए १०० प्रतिशत आरक्षित कर दिया गया

शूद्रों के लिए

ब्राम्‍हण, क्षत्रिय एवं वेश्‍यों की सेवा दासता, गुलामी करना शूद्र का प्रमुख व एक मात्र कर्तव्‍य निर्धारित कर दिया गया

शूद्र 𝕆𝔹ℂ, 𝕊ℂ, 𝕊𝕋  को सभी प्रकार के समाजिक, शैक्षणिक, सांस्‍कृतिक और आर्थिक दृष्टि से १०० प्रतिशत बंचित कर दिया गया

८५ प्रतिशत बहुजन मूल निवासी समाज को सभी हक अधिकारों से बंचित रख कर हजारों सालों तक देश में शासन सत्‍ता चलती रही 

 हक अधिकार पाने के लिए समय समय पर संधर्ष व प्रयास होते रहे लेकिन सफलता नही मिली

५. मुस्लिम शासक

भारत पर सबसे पहले हमला मुस्लिम शासक मीर कासिम ने 𝟟𝟙𝟚 ई. में किया !*

 उसके बाद 

महमूद गजनबी, 

मुहम्मद गौरी, 

चंगेज खान ने हमला किया और फिर कुतुबदीन ऐबक, 

गुलाम वंश, 

तुगलक वंश, 

खिल्जी वंश, 

लोदी वंश 

फिर मुगल

 *(ये मुसलमान नहीं थे, मुग़ल एक रेस या वंश का नाम है)* आदि वंशों ने भारत पर राज किया और खूब अत्याचार किये लेकिन ब्राह्मण ने कोई क्रांति या आंदोलन नहीं चलाया ! 

इस प्रकार बहुजन समाज मनुवादियाें का गुलाम था मनुवादी मुसलमानों के गुलाम बने. इस प्रकार शूद्र अर्थात बहुजन दोहरे गुलाम हो गये. मुसलमानो ने मनु के विधान में कोई हस्‍तक्षेप नही किया इसलिए ब्राम्‍हणों ने मुसलमानों के खिलाफ कोई आंदोलन नही चलाया

उसके बाद मनुवादी अग्रेजों के गुलाम बने उस समय भी एससी, एसटी, औबीसी के लोग मनुवादियों अर्थात ब्राम्‍हणवादियों के गुलाम बने रहे इस तरह बहुजन समाज के लोग दोहरे गुलाम थे  देश में दो कानून चलते थे एक मुनु का कानून और दूसरा अग्रजों का कानून

अग्रेजों ने मनु के कानून के विपरीत कानून बनाकर ब्राम्‍हणवादियों के जुल्‍मों पर रोक लगाना सुरू कर दिया जिसकी बजह से ब्राम्‍हणों ने कांग्रेस संगठन बना कर अग्रेजों के खिलाफ आंदोलन सुरू कर दिया

६. अंग्रेजों ने भारत पर 𝟙𝟝𝟘 वर्षों तक राज किया

६.१ ब्राह्मणों ने उनको भगाने के लिए हथियार बन्द आंदोलन क्यों चलाया ?*

अंग्रेजो ने 𝟙𝟟𝟡𝟝 में अधिनयम 𝟙𝟙 द्वारा शुद्रों को भी सम्पत्ति रखने का कानून बनाया।

𝟙𝟟𝟟𝟛 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने रेगुलेटिग एक्ट पास किया जिसमें न्याय व्यवस्था समानता पर आधारित थी , 𝟞 मई 𝟙𝟟𝟟𝟝 को इसी कानून द्वारा बंगाल के सामन्त ब्राह्मण *नन्द कुमार देव को फांसी हुई थी ।*

𝟙𝟠𝟘𝟜 अधिनियम 𝟛 द्वारा कन्या भ्रूण हत्या पर रोक अंग्रेजों ने लगाई (लडकियों के पैदा होते ही तालु में अफीम चिपकाकर, माँ के स्तन पर धतूरे का लेप लगाकर, एवम गढ्ढा बनाकर उसमें दूध भरकर डुबो कर मारा जाता था।)

𝟙𝟠𝟙𝟛 में ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर शिक्षा ग्रहण करने का सभी जातियों और धर्मों के लोगों को अधिकार दिया ।

𝟙𝟠𝟙𝟛 में अग्रजो ने दास प्रथा का अंत कानून बनाकर किया ।

𝟙𝟠𝟙𝟟 में समान नागरिक संहिता कानून बनाया (𝟙𝟠𝟙𝟟 के पहले सजा का प्रावधान वर्ण के आधार पर था । ब्राह्मण को कोई सजा नही होती थी और शुद्र को कठोर दंड दिया जाता था। अंग्रेजो ने सजा का प्रावधान समान कर दिया।)

𝟙𝟠𝟙𝟡 में अधिनियम 𝟟 द्वारा ब्राह्मणों द्वारा शुद्र स्त्रियों के शुद्धिकरण पर रोक लगाई। *(शुद्रों की शादी होने पर दुल्हन को अपने दूल्हे के घर न जाकर कम से कम तीन रात ब्राह्मण के घर शारीरिक सेवा देनी पड़ती थी।)*

दिसम्बर 𝟙𝟠𝟚𝟡 के नियम 𝟙𝟟 द्वारा विधवाओं को जलाना अवैध घोषित कर सती प्रथा का अंत किया।

𝟙𝟠𝟛𝟘 नरबलि प्रथा पर रोक ( देवी -देवता को प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मण शुद्रों, स्त्री व पुरुष दोनों को मन्दिर में सिर पटक पटक कर चढ़ा देता था।)

𝟙𝟠𝟛𝟛 अधिनियम 𝟠𝟟 द्वारा सरकारी सेवा में भेद भाव पर रोक अर्थात योग्यता ही सेवा का आधार स्वीकार किया गया तथा कम्पनी के अधीन किसी भारतीय नागरिक को जन्म स्थान, धर्म, जाति या रंग के आधार पर पद से वंचित नहीं रखा जा सकता है।

𝟙𝟠𝟛𝟜 में पहला भारतीय विधि आयोग का गठन हुआ। कानून बनाने की व्यवस्था जाति, वर्ण, धर्म और क्षेत्र की भावना से ऊपर उठकर करना आयोग का प्रमुख उद्देश्य था।

𝟙𝟠𝟛𝟝 प्रथम पुत्र को गंगा दान पर कानून बनाया और रोक लगाई।

 *(ब्राह्मणों ने नियम बनाया था कि शुद्रों के घर यदि पहला बच्चा लड़का पैदा हो तो उसे गंगा में फेंक देना चाहिये। पहला पुत्र ह्रष्ट-पुष्ट एवं स्वस्थ पैदा होता है। यह बच्चा ब्राह्मणों से लड़ न पाए इसलिए पैदा होते ही गंगा को दान करवा देते थे।)*

𝟟 मार्च 𝟙𝟠𝟛𝟝 को लार्ड मैकाले ने शिक्षा नीति राज्य का विषय बनाया और उच्च शिक्षा को अंग्रेजी भाषा का माध्यम बनाया गया।

𝟙𝟠𝟛𝟝 को कानून बनाकर अंग्रेजों ने शुद्रों को कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया।

देवदासी प्रथा पर रोक लगाई। *ब्राह्मणों के कहने से शुद्र अपनी लडकियों को मन्दिर की सेवा के लिए दान देते थे। मन्दिर के पुजारी उनका शारीरिक शोषण करते थे। उनसे बच्चा पैदा होने पर या तो उसे फेंक देते थे या उस बच्चे को हरिजन नाम देते थे।*

𝟙𝟡𝟚𝟙 को जातिवार जनगणना के आंकड़े के अनुसार अकेले मद्रास में कुल जनसंख्या 𝟜 करोड़ 𝟚𝟛 लाख थी जिसमें 𝟚 लाख देवदासियां मन्दिरों में पड़ी थी।* *यह प्रथा अभी भी दक्षिण भारत के मन्दिरो में चल रही है।

𝟙𝟠𝟛𝟟 अधिनियम द्वारा ठगी प्रथा का अंत किया।

𝟙𝟠𝟜𝟡 में कलकत्ता में एक बालिका विद्यालय जे ई डी बेटन स्थापित किया।

𝟙𝟠𝟝𝟜 में अंग्रेजों ने 𝟛 विश्वविद्यालय कलकत्ता मद्रास और बॉम्बे में स्थापित किये,𝟙𝟡𝟘𝟚 मे विश्वविद्यालय आयोग नियुक्त किया गया।

𝟞 अक्टूबर 𝟙𝟠𝟞𝟘 को अंग्रेजों ने इंडियन पैनल कोड – 𝕀ℙℂ बनाया। लार्ड मैकाले ने सदियों से जकड़े शुद्रों की जंजीरों को काट दिया ओर भारत में जाति, वर्ण और धर्म के बिना एक समान क्रिमिनल लॉ लागू कर दिया।

𝟙𝟠𝟞𝟛 अंग्रेजों ने कानून बनाकर चरक पूजा पर रोक लगा दिया।

 *(आलिशान भवन एवं पुल निर्माण पर शुद्रों को पकड़कर जिन्दा चिनवा दिया जाता था इस पूजा में मान्यता थी की भवन और पुल ज्यादा दिनों तक टिकाऊ रहेगें।)*

𝟙𝟠𝟞𝟟 में बहुविवाह प्रथा पर पूरे देश में प्रतिबन्ध लगाने के उद्देश्य से बंगाल सरकार ने एक कमेटी गठित किया ।

𝟙𝟠𝟟𝟙 में अंग्रेजों ने भारत में जातिवार गणना प्रारम्भ की। यह जनगणना 𝟙𝟡𝟜𝟙 तक हुई ।    *𝟙𝟡𝟜𝟠 में काग्रेंस की सरकार ने कानून बनाकर जातिवार गणना पर रोक लगा दी।*

𝟙𝟠𝟟𝟚 में सिविल मैरिज एक्ट द्वारा 𝟙𝟜 वर्ष से कम आयु की कन्याओं एवम 𝟙𝟠 वर्ष से कम आयु के लड़को का विवाह वर्जित करके बाल विवाह पर रोक लगाई।

अंग्रेजों ने महार और चमार रेजिमेंट बनाकर इन जातियों को सेना में भर्ती किया लेकिन 𝟙𝟠𝟡𝟚 में ब्राह्मणों के दबाव के कारण सेना में अछूतों की भर्ती बन्द हो गयी।*

रैयत वाणी पद्धति अंग्रेजों ने बनाकर प्रत्येक पंजीकृत भूमिदार को भूमि का स्वामी स्वीकार किया।

अंग्रेजो ने 𝟙𝟡𝟙𝟡 में भारत सरकार अधिनियम का गठन किया ।

*𝟙𝟡𝟙𝟡 में अंग्रेजों ने ब्राह्मणों को जज बनने पर रोक लगा दी थी, और कहा था की इनके अंदर न्यायिक चरित्र नही होता है।*

𝟚𝟝 दिसम्बर 𝟙𝟡𝟚𝟟 को डॉ अम्बेडकर द्वारा मनु समृति का दहन किया। मनु स्मृति में शूद्रों और महिलाओं को गुलाम तथा भोग की वस्तु समझा जाता था, एक पुरूष को अनगिनत शादियां करने का धार्मिक अधिकार है महिला अधिकार विहीन तथा दासी की स्थिति में थी। एक – एक औरत के अनगिनत सौतने हुआ करती थी औरतों- शूद्रों के लिए सिर्फ और सिर्फ गुलामी लिखा है जिसको *ब्राह्मण मनु* ने धर्म का नाम दिया है।

𝟙 मार्च 𝟙𝟡𝟛𝟘 को डॉ०अम्बेडकर द्वारा काला राम मन्दिर (नासिक) प्रवेश का आंदोलन चलाया।

𝟙𝟡𝟚𝟟 को अंग्रेजों ने कानून बनाकर शुद्रों के सार्वजनिक स्थानों पर जाने का अधिकार दिया।

𝟙𝟡 मार्च 𝟙𝟡𝟚𝟠 को बेगारी प्रथा के विरुद्ध डॉ अम्बेडकर ने मुम्बई विधान परिषद में आवाज उठाई। जिसके बाद अंग्रेजों ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया।

अंग्रेजों ने 𝟙 जुलाई 𝟙𝟡𝟜𝟚 से लेकर 𝟙𝟘 सितम्बर 𝟙𝟡𝟜𝟞 तक *डाॅ अम्बेडकर को वायसराय की कार्य साधक कौंसिल में लेबर मेंबर बनाया। लेबरो को डॉ० अम्बेडकर ने 𝟠.𝟛 प्रतिशत प्रतिनिधित्व दिलवाया।*

𝟙𝟡𝟛𝟟 में अंग्रेजों ने भारत में प्रोविंशियल गवर्नमेंट का चुनाव करवाया।

𝟙𝟡𝟜𝟚 में अंग्रेजों से डॉ अम्बेडकर ने 𝟝𝟘 हजार हेक्टेयर भूमि को अछूतों एवम पिछङो में बाट देने के लिए अपील किया । अंग्रेजों ने 𝟚𝟘 वर्षों की समय सीमा तय किया था।

अंग्रेजों ने शासन प्रसासन में ब्राह्मणों की भागीदारी को 𝟙𝟘𝟘% से 𝟚.𝟝% पर लाकर खड़ा कर दिया था।*

*इन्ही सब वजाह से ब्राह्मणों ने अंग्रेजो के खिलाफ़ क्रांति शुरू कर दी क्योकि अंग्रेजो ने शुद्रों और महिलाओं को सारे अधिकार दे दिये थे और सब जातियों के लोगो को एक समान अधिकार देकर सबको बराबरी मे लाकर खड़ा किया।

  

६.२ आरक्षण के जनक छत्रप्रति साहूू जी महाराज के सामाजिक न्‍याय केलिए प्रयास

२६ जुलाई १९०२ को कोल्‍हापुर रियासत में शिक्षा व नौकरियों में ५० फीसदी आरक्षण का प्रावधान लामू किया 

आरक्षण का पहली बार कनून व नियम बना कर लागू करने वाले थे छत्रपति साहूजी महाराज

१९१२ मे प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया व १५ जुलाई १९१७ को निशुल्‍क करने का आदेश जारी कर दिया

५०० से १००० तक के हर गांव व कस्‍बे को एक स्‍कूल खोलने का आदेश जारी किया

९ जुलाई १९१७ को सभी मंदिरों व देवस्‍थानों को राजकीय संपत्ति घोषित कर दिया व गैर ब्राम्‍हण मराठाओं को पुजारी बनने का अधिकार दिया

जब तक जाति खत्‍म नही होगी तब तक मनुस्‍यता की दुनिया नही बना सकते है

१९१९ में सरकारी अस्‍पतालों मे अछूतों का संमान व गरिमा के साथ इलाज कराने का अधिकार दिया

आरक्षण के कोटे से आने वालों को प्रशिक्षण देने की जिम्‍मेदारी ब्राम्‍हण अधिकारियों को दी और वह प्रशिक्षण देने मे असफल रहते तो उन ब्राम्‍हण अधिकारियों को नौकरी से हटा देते थे

१९२० में दलित छात्रों के लिए छात्रावास का निर्माण किया 

जाति का जिंदा रहना पाप है जब तक जाति का संपूर्ण रूप से उन्‍मूलन नही कर देते है तब तक यह हमारी प्रगति में बाधक होगी

३ मई १९२० को बधुआ बेगार मजदूरी पर प्रतिबंध लगा देते है

१९२० में संपति व उत्‍तराधिकार का अधिकार Mahilao को दिया

डाक्‍टर आम्‍बेडकर को पढाई के लिए पैसा दिया

शाहूजी महाराज ने 1901 में जातिगत जनगणना करवाई और आरक्षण व्यवस्था लागू की. इसके परिणाम स्वरूप 1912 में कुल 95 पदों पर गैर ब्राह्मण अधिकारियों की संख्या 60 हो गई. शाहूजी महाराज ज्योतिबा फुले से बहुत प्रभावित थे

छत्रपति साहू जी जो कुर्मी समाज से थे पिछडों के लिए आरक्षण के जनक के समाजिक न्‍याय के प्रयासों को निस्‍प्रभावी करने के लिए सरदार बल्‍लभाई पटेल को तैयार किया और लोह पुरूष कह कर प्रचारित किया

जो काग्रेस के इसारे पर चलते थे जो मनुवादियों के इसारे पर आरक्षण का विरोध करते थे 

गांधी और कांग्रेस ने उचे उठो जनेउ पहनो चला कर डाक्‍टर अम्‍बेडकर से अन्‍य पिछडों को अलग कर दिया अन्‍य पिछडा वर्ग सरदार वल्‍लभ भाई पटेल को नेता समझने लगे थे

६.३ साउथ ब्‍यूरो कमीशन

1917 में अंग्रेजो ने एक कमेटी का गठन किया था,, जिसका नाम था साउथ व्‍यूरो कमिशन,, जो कि भारत के हजारों सालों से वंचित इन 85% लोगों को हक अधिकार देने के लिए बनाया गया था,, 

उस समय ओबीसी की तरफ से शाहू महाराज ने भास्कर राव जाधव को,, और एससी एसटी की तरफ से डॉक्टर अम्बेडकर को इस कमीशन के समक्ष अपनी मांग रखने के लिए भेजा।।*

६.४. साइमन कमीशन

नवम्बर 𝟙𝟡𝟚𝟟 में साइमन कमीशन की नियुक्ति की

जो 𝟙𝟡𝟚𝟠 में भारत के अछूत लोगों की स्थिति का सर्वे करने और उनको अतिरिक्त अधिकार देने के लिए आया।

भारत के लोगों को अंग्रेज अधिकार न दे सके इसलिए इस कमीशन के भारत पहुँचते ही *गांधी और लाला लाजपत राॅय ने इस कमीशन के विरोध में बहुत बड़ा आंदोलन चलाया।

जिस कारण साइमन कमीशन अधूरी रिपोर्ट लेकर वापस चला गया। इस पर अंतिम फैसले के लिए अंग्रेजों ने भारतीय प्रतिनिधियों को 𝟙𝟚 नवम्बर 𝟙𝟡𝟛𝟘 को लन्दन गोलमेज सम्मेलन में बुलाया।

*𝟚𝟜 सितम्बर 𝟙𝟡𝟛𝟚 को अंग्रेजों ने कम्युनल अवार्ड घोषित किया जिसमें प्रमुख अधिकार निम्न दिए : -*

𝔸) वयस्क मताधिकार,

𝔹.विधान मण्डलों और संघीय सरकार में जनसंख्या के अनुपात में अछूतों को आरक्षण का अधिकार,

ℂ) सिक्ख, ईसाई और मुसलमानों की तरह अछूतों (𝕊ℂ/𝕊𝕋 )को भी स्वतन्त्र निर्वाचन के क्षेत्र का अधिकार मिला। जिन क्षेत्रों में अछूत प्रतिनिधि खड़े होंगे उनका चुनाव केवल अछूत ही करेगें।

𝔻) प्रतिनिधियों को चुनने के लिए दो बार वोट का अधिकार मिला जिसमें एक बार सिर्फ अपने प्रतिनिधियों को वोट देंगे दूसरी बार सामान्य प्रतिनिधियों को वोट देगे।

६.५ सरदार बल्‍लभ भाई पटेल 

सरदार पटेल ने पिछडों के हको के लिए लडाई नही लडी उल्‍टा अछूतों के अधिकारों का विरोध किया

सामाजिक न्‍याय के प्रयासो को विफल करने के लिए सरदार पटेल को कग्रेस ने तैयार किया 

अन्‍य पिछडे वर्ग का प्रतिनिधित्‍व सरदार बल्‍लभाई पटेल कर रहे थे जो पिछडे वर्ग के लिए हक मांगने की जगह उल्‍टा आरक्षण का विरोध कर रहे थे वह अन्‍य पिछडे वर्ग के हको के लिए गोलमेज सम्‍मेलन नही गये और ना ही किसी को प्रतिनिधि नियुक्‍त किया जिसकी सजा अन्‍य पिछडा वर्ग आज तक भोग रहा है वह ब्राम्‍हणवादियों के पिछलग्‍गू बने रहे 

बाल गंगाधर तिलक कहते थे कि ”तेली,, तंबोली,, कुर्मी कुनभट्टों को संसद में जाकर क्या हल चलाना है।”

गोलमेज सम्‍मेलन में गांधी ने कहा अछूतो का नेता अम्‍बेडकर नही है मे हूँ वेस भूसा भी अछतों जैसा बना लिया 

तब भारत से तार मगवाये गये 

उस समय अछूत नेताओं ने सभाएं की और जूलूस निकाले और महात्‍मागांधी को झूठा और फरेबी ठहराया

७.१ गांधी अम्‍बेडकर समझौता

७.१ कैसे चुनना सुरू हुए गुलाम नेता ?

२४ सितंबर, १९३२ को यरवदा समझौता अर्थात पूना पैक्‍ट पर नेताओं के हस्‍ताक्षर हुए उसके बाद दलितों का प्रथक निर्वाचन का अधिकार समाप्‍त हो गया 

७८  सीटों की जगह  १४८ सीटे मिल गई 

डबल वोट का अधिकार समाप्‍त हो गया

लेकिन मुस्लिमों, सिखों, भारतीय ईसाइयों, एंग्लो-इंडियन, यूरोपीय के कम्‍युनल आवर्ड चलता रहा 

इस प्रकार दलितों के साथ धोका हुआ जिसमें दलितों ७८ असली प्रतिनिधि बनने का अधिकार छीन लिया उसकी जगह दुगने गुलम प्रतिनिधि बनना स्‍वीकार लिया

डाक्‍टर अम्‍बेडकर ने अपनी पुस्‍तक ” कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिए क्‍या किया”  के एक अध्‍याय का शीर्षक है ”एक जलील सौदा” इसमे डाक्‍टर अम्‍बेडकर ने लिखा है ”कांग्रेस ने पूना पैक्‍ट मे से रस तो चूस लिया परंतु जो छिलका बचा वह अछूतों के सामने फेक दिया”

अन्‍य पिछडे वर्ग को नातो प्रथक निर्वाचन क्षेत्र मिले और नही सामान्‍य निर्वाचन क्षेत्रों का आरक्षण मिला. इस प्रकार अन्‍य पिछडे वर्ग के साथ कांग्रेस के नेता सरदार पटेल व महात्‍मा गांधी ने महा धोका किया 

वल्‍लभ भाई पटेल के कारण पिछडे वर्ग का कोई दूसरा नेता नही पनप सका 

आप पार्टियो में अनुभव करना कि नेता अपनी जाति का दूसरा नेता नही पनपने देता है हमेशा जाति के नेता को ही काटता है

ब्राम्‍हणवादी लोग किसी पिछडे वर्ग के नेता को आगे बढाने की बात करे तो समझ लेना चाहिए कि पिछडे वर्ग का बडा अहित करने वाले है 

७.२ प्रथक निर्वाचन प्रणाली क्‍या होता है

यह जिस वर्ग के लिए सुरक्ष्तिा होता है उसी वर्ग का प्रत्‍यासी चुनाव लड सकता है उस क्षेत्र के उसी वर्ग के लोग वोट देकर उसे चुनते है दूसरे वर्ग के लोंगों को वोट डालने का अधिकार नही होता है 

अक्टूबर 1906 में आगा खां के नेतृत्व में मुसलमानों का एक प्रतिनिधिमंडल वायसराय लार्ड मिन्टो से मिला था और मांग की कि मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था की जाए तथा मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाये।

पृथक निर्वाचन मंडल की शुरुआत भारत सरकार अधिनियम 1909 द्वारा मुसलमानों के लिए की गई थी जिसे मॉर्ले-मिंटो सुधार कहते हें

अधिनियम ने ‘पृथक निर्वाचन क्षेत्र’ की अवधारणा पेश की। इसके तहत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव केवल मुस्लिम मतदाताओं द्वारा किया जाना था। . इसने प्रेसीडेंसी निगमों, वाणिज्य मंडलों, विश्वविद्यालयों और जमींदारों के अलग-अलग प्रतिनिधित्व का भी प्रावधान किया।

भारत सरकार अधिनियम 1919 द्वारा इसका विस्तार सिखों, भारतीय ईसाइयों, एंग्लो-इंडियन और यूरोपीय लोगों के लिए भी किया गया।

मुस्लिमों, सिखों, भारतीय ईसाइयों, एंग्लो-इंडियन, यूरोपीय  और दलितो को अधिकार मिल चुके थे  अन्‍य पिछडा वर्ग अपने अधिकारों से बंचित रह गया था उसके अधिकारों के लिए गांधी जी को आमरण अनसन करना चाहिए था

प्रथक निर्वाचन का विरोध १९०९ में करना चाहिए था जब मुसलमानों को दिया गया था १९१९ में करना चाहिए था जब इसका विस्‍तार सिख्‍खों, ईसाईयों, एंग्‍लों-इंडियरन, यूरोपियन के लिए किया गया था  

२० सितंबर १९३२ को दलितों के कम्‍युनल अवार्ड के खिलाफ गांधी का आमरण अनसन सुरू किया

७.३ अन्‍य पछिडा वर्ग को कुछ क्‍यों नही मिला? इसका कारण क्‍या है?

उत्‍तर हिन्‍दू होना

जब तक हिन्‍दू बने रहेगें कुछ नही मिलेगा क्‍योकि वोट हिन्‍दू के नाम पर दे ही देते हो तो फिर आपको कुछ देने की जरूरत ही क्‍या है?

पिछडा वर्ग का मूल धर्म तो बौद्ध है जिसको उसने छोड दिया है और ब्राम्‍हण धर्म को अपना लिया है जो उसका नही है जिसमें उसको कोई अधिकार नही है जब तक हिन्‍दू बना रहेगा गुलामी करता रहेगा

जब कोई अपना घर छोडकर दूसरे के मकान में रहने लगेगा तो जैसे मकान मालिक रखेगा वेसे रहना पडेगा हिन्‍दू धर्म का मालिक ब्राम्‍हण है जो पिछडों को गुलाम बना कर रखता है

वह हिन्‍दू धर्म को अपना धर्म मानता है हिन्‍दु धर्म मनु विधान से चलता है जिसमें उसको कोई अधिकार नही है मात्र सेवा करने का अधिकार है 

हिन्‍दु धर्म नही वह ब्राम्‍हण धर्म है लोगों को मूर्ख बनाने के लिए हिन्‍दू धर्म कहते है जिसमें ब्राम्‍हण को ही सब अधिकार है हिन्‍दू धर्म को मजबूत करने का मतलब है ब्राम्‍हण को मजबूत करना है 

हिन्‍दू धर्म को मजबूत करने का मतलब है पिछडा वर्ग को मानसिक गुलाम बनाना है

पिछडा वर्ग जब तक धार्मिक कार्य ब्राम्‍हणों से करवाते रहेगें तब तक उन्‍हे कोई अधिकार नही मिल सकते हैं

संयुक्‍त निर्वाचक मण्‍डल और आरक्षित सीटों की व्‍यवस्‍था ने अन्‍य पिछडे वर्ग, अनुसूचित जातियों, जन जातियों के स्‍वतत्र आंदोलन को ध्‍वस्‍थ कर दिया गया

डाॅक्‍टर अम्‍बेडकर जैसी बौद्धिक क्षमता और कद का व्‍यक्ति दो बार १९५२ के आम चुनाव में मुंबई से और दूसरी १९५४ के उप चुनाव में भंडारा से, संसदीय चुनाव जीतने में असफल रहे . 

इन दोनो ही चुनाव में व उच्‍च जातिय हिन्‍दुओं की कांग्रेस के टिकिट पर खडे अल्‍पज्ञान और अनजाने से प्रत्‍यासियों से पराजित हो गये

भारत के दलित-शोषित लोग, जो कुल जनसंख्‍या ८५ प्रतिशत है, एक नेतृत्‍व -विहीन समूह है. वास्‍तव मे उनमें नेतृत्‍व विहीनता उत्‍पन्‍न करने में उच्‍च जातीय हिन्‍दू सफल रहे हैं

 वर्तमान में तो धर्म के नाम पर पालतू कुत्‍ते पार्टियों ने पैदा कर लिए है जो कुछ भी बोलने पर कुत्‍तों की तरह काटने को दौड पडते हैं

तुरंत देश द्रोही घोषित कर देते है

७.४ स्‍वतंत्र भारत कैसा होना था

७.५ स्‍वतंत्र भारत कैसा हो गया 

८. स्‍वतंत्र प्रतिनिधि और उसकी तागत

मैं स्‍वतंत्र हूं 

मैं इस समय स्‍वतंत्र सांसद हूं छ बार का सांसद हूं मुझे मत बताओं

यह बात एक के माध्‍यम से उन सभी संसदों के लिए कह दी जो अपनी पार्टी के नेता की कृपा पर जीत कर गये हैं

जनता द्वारा बिना पार्टी के सीधे चुना हुआ प्रतिनिधि स्‍वतंत्र कहलाता है पार्टियों द्वारा चुना हुआ प्रतिनिधि चमचा या गुलाम कहलाता है

पार्टी के अनुशासन के नाम पर स्‍वतंत्र व्‍यक्ति पर कोई कार्यवाही नही कर सकता है और ना ही इन पर दल बदल कानून लागू होता है जो इन्‍हे पार्टी से निकाल कर सदस्‍यता समाप्‍त करवा दे

चामचा व गुलाम बनाने के दो हथियार है 

१. पार्टी सिस्‍टम

२. दल बदल कानून

स्‍वतंत्र प्रतिनिधि पर ये दोनो ही लागू नही होते हैं

९. चमचा युग

”यदि चिर परिचित लिहाज से कहना हो तो हिन्‍दुओं के लिहाज से संयुक्‍त निर्वाचक मण्‍डल ”एक सडा गला नगर है” जिसमें हिन्‍दुओं को किसी अछूत को नामांकित करने का ऐसा अधिकार मिला हुआ है जिसमें उसे अछूतों का प्रतिनिधि तो नाम मात्र के लिए बनायें लेकिन असलियत में उसे हिन्‍दुओं का (औजार) पिछलग्‍गू बना सकें” डॉ. बी.आर. अम्‍बेडकर

डाक्‍टर अम्‍बेडकर को अपने समय में सिर्फ कांग्रस के और अनुसूचित जातियों के चमचों से जूझना पडा

सभी पाटियों ने अलग अलग समाजों से अलग अलग जातियों से चमचे पैदा कर लिए हैं वर्तमान में हर जाति में चमचों की भरमार है  

कोई औजार, दलाल, पिछलग्‍गू अथवा चमचा इसलिए बनाया जाता है ताकि उससे सच्‍चे और वास्‍तविक संधर्षकर्ता का विरोध कराया जा सके. चमचों की मांग तभी होती है जब सामने सच्‍चा और वास्‍तविक संधर्षकर्ता मौजूद हो

जब किसी लडने वाले की ओर से किसी प्रकार की लडाई न हो , संघर्ष न हो और कोई खतरा न हो ताे चमचों की मांग भी नही रहती है

लगभग पूरे भारत में बीसवी शताब्‍दी के शुरूआत से ही दलित वर्ग छुआछूत और अन्‍यायपूर्ण सामाजिक व्‍यवस्‍था के खिलाफ उठ खडा हुआ 

पहले उसकी उपेछा की गई किन्‍तु बाद में जब दलित वर्गो का सच्‍चा नेतृत्‍व  प्रवल और शक्तिसम्‍पन्‍न हो गया तो उनकी अपेछा नही की जा सकती थी 

इस मुकाम पर उच्‍च जातीय हिन्‍दुओं को दलित वर्गो के विरूध चमचों काे उभारने की जरूरत महसूस हुई.

१९३० से १९३२ के बीच कांग्रेस व महात्‍मागाधी ने पहली वार चमचों की आवश्‍यकता महसूश की

पिछडा वर्ग भी जहां जहां जाग्रत हुआ वहा वहां चमचे पैदा हुए 

समाजवादी आदोंलन व अम्‍बेकरी आंदोलन से समजा में जो जाग्रति आयी उसकी बजह से अर्जुन सिंह ने पिछडो के लिए शिक्षा में आरक्षण लागू किया और बीपी सिंह ने मण्‍डल रिपोर्ट लागू की जिसकी बजह से पिछडे वर्ग मे और अधिक जाग्रति पैदा हुई

कांशीराम जी के मण्‍डल आंदोलन और ८५ पर १५ का राज नही चलेगा आदि नारों के कारण पिछाडा वर्ग जाग्रत हुआ जिसकी बजह से हमारे जैसे हजारों कार्यकर्ता पैदा हुए उन्‍हे दवाने के लिए पिछडे वर्ग में चमचों का जन्‍म हुआ 

बीएसपी से पिछडों को टिकिट मिलने लगे जिससे पिछडों में राजनेतिक जाग्रति पेदा हुई

यूपी और विहार जैसे राज्‍यों में पिछडों ने पार्टियां ही बना ली थी

लालू यादव को बदनाम कर जेल में रहना पडा व राजनीति से बाहर कर दिया

ऐसे ही कई राज्‍यों मे भी क्षेत्रीय प्रयास भी चल रहे होगें जो हमारी जानकारी में नही है 

इन सभी प्रयासों के कारण पिछडों मे भी बडे बडे चमचे पैदा किये है

डाक्‍टर अम्‍बेडकर ने ३० सिंतबर १९५६ को कहा था- ” राजनेतिक रिजर्वेशन को समाप्‍त करके इसके स्‍थान पर चुनाव का नया ढंग लामू किया जाय वर्तमान चुनाव पद्धति की बजाए आनुपातिक प्रतिनिधि पद्धति (Proportional Reservation) अथव एकत्रित मतदान पद्धति (Cumulative Voting System) को लागू किया जाय. यानी जिस दल के पछ में जितने मत पडें, उसके विधान सभा व लोक सभा में उतने ही प्रतिनिधि हों.”

१० भारत में असमानता

भारत में कई तरह की असमाता है  

१. जातिगत असमाता 

२. आर्थिक असमानता

आर्थिक असमानता को तो आसानी से खत्‍म किया जा सकता है 

जातिगत असमानता को आसानी से खत्‍म नही किया जा सकता है क्‍योकि यह एक दिमागी बीमारी है जो बचपन से उत्‍तराधिकार में मिलती है जिस परिवार में यह बीमारी होती है उसके बच्‍चों में भी यह बीमारी हो जाती है जो परंपरागत रूप से चलती जाती है जिसको ब्राम्‍हण विभिन्‍न तरीके से लगातार मजबूत करने का काम करता है कथा भागवत धार्मिक आयोजनों के माध्‍यम से इसका बढाता रहता है

जातिगत अपमान

अन्‍य पिछडो वर्ग की कुछ जातियों के साथ छुआ छूत नही होत है लेकिन जातिगत अपमान होता है 

११. बहुजन समाज का विभाजन 

१२.१ मानसिंग गुलाम

जो नेता समजा की बात करता है उसको पैदा होने के पहले ही राजनैतिक रूप से खत्‍म कर दिया जाता है उसके बिरोध में उसी के समाज का गुलाम व चाटुकार नेता तैयार कर उसका प्रचार प्रसार कर दिया जात है जिससे उसकी समाज को लगता है कि सब कुछ उनकी समाज का नेता ही कर रहा है जबकि वह एक मात्र कठपुतली होता है जैसे वाे नचाते है वैसे ही नाचता है

वह भूषा भरा पडेउ की तरह उसका उपयोग करते है

१२.२ भूसा भरा पडेउ

१२.३ वफादार कुत्‍ता  

बाबा साहब ने कहा था ” हमारा आदमी सदियों से भूखा है वे कुत्‍ते के माफिक है उसे जिधर हडृडी मिलती है उधर चला जाता है”

जिस वेदना और पीडा से लोग गुजर रहे हैं इनको इससे कोई सरोकार नही है वे पालतू कुत्‍तों जैसा व्‍यवहार करते है और भोंकते तक नही है

समाज का कोई दूसरा मुद्धो को उठा रहा होगा ताे उसका विरोध करना सुरू कर देगें 

ऐसे नही चाहिए जो पालतू कुत्‍तों के तरह अपने टुकडों की खातिर समाज के अधिकारों के लिए भोक भी न सके

१२.४ मधुमंख्‍खी 

मधुमंख्‍खी समान्‍यत: किसी को काटती नही है क्‍योकि वह जानती है कि किसी को कटने बाद वह मर जाती है

लेकिन जब उनके छत्‍ते को कोई खतरा पहुचाता है ऐसा महसूस करती है कि उसकी कोम को कोई खतरा पहुचा रहा है तो

वह दुश्‍मन पर हमला करती है और उसे काट कर अपनी जान दे देती है और वह  समूहिक रूप से अपनी कुर्वानी दे देती है

मधुमख्‍खी अपनी कोम को बचाने के लिए अपनी जान दे देती है

१२.५ नेताओं का स्‍वागत

१३. पार्टीयां की फ्री की स्‍कीम

१४. ब्राम्‍हणों को पहचानने का तरीका

डाक्‍टर अम्‍बेडकर ने ब्राम्‍हणों को पहचानने का एक सूत्र बताया कि ” जब जब ब्राम्‍हण दूसरे के लिए कहता है दूसरे के बारे मे कहता है, दूसरे की तरफ से कहता है, तब तब समझ लेना चाहिए कि यह दूसरों के लिए नही कह रहा है अपने लिए ही कह रहा है . 

जब ब्राम्‍हण नारा देता है कि राष्‍ट्र खतरे में है तब समझ लेना चाहिए कि ब्राम्‍हण खतरे में है 

जब ब्राम्‍हण नारा देता है कि हिंदू धर्म खतरे में तब समझ लेना चाहिए कि हिन्‍दु धर्म नही ब्राम्‍हण खतरे में है. 

१५. निष्कर्ष:

जब तक सभी जातियों को राजनीति में समान भागीदारी नहीं मिलती, तब तक समाज में वास्तविक समानता प्राप्त नहीं की जा सकती।

राजनीति के क्षेत्र में जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने और ब्राम्‍हणों के वर्चस्व को तोड़ने के लिए समग्र और सतत प्रयासों की जरूरत है। इसके लिए कानूनी सुधार, शिक्षा, राजनैतिक और सामाजिक जागरूकता अभियान आवश्यक हैं। 

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