चर्चा के विषय-
२. ब्राम्हणाें की भागीदारी आजादी के पूर्व,
आजादी के समय, आजादी के बाद
३. मुसलमान औार कायस्थों की भागीदारी
आजादी के समय व आजादी के बाद
४. आजादी के बाद नौकरियों में भागीदारी
कैसी होनी चाहिए थी
५. आजादी के बाद भागीदारी कैसी हो गई
६. नौकरियों में किसका, कितना हिस्सा छीना
७. क्रोनी कैपिटलिज्म
८. क्या आरक्षण आर्थिक आधार पर होना
चाहिए
९. आरक्षण का अर्थ क्या है?
१०. मनु की आरंक्षण व्यवस्था
११ पिछडे वर्ग को आरक्षण की
आवश्यकता क्यों?
१२. भारत में पिछडों के लिए आरक्षण की शुरूआत एवं इसके
विभिन्न चरण
१३. पिछडों बंचितों को क्षेत्रिय स्तर पर भागीदारी देने का प्रयास
१४. अखित भारतीय स्तर पर पिछडे बंचितो को अधिकार
१४.१. साउथ ब्यूरो कमीशन
१४.२. साइमन कमीशन
१४.३. काका कालेलकर आयोग
१४.४. मण्डल आयोग
१५. आरक्षण के प्रकार
१६. भारत में आरक्षण को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक प्रावधान
१७. आरक्षण की न्यायिक जांच
१८. सुझाव
१९ निष्कर्ष
१. नौकरी में भागीदारी
नौकरियां मात्र रोजगार का साधन नही है यह समाज के प्रतिनिधित्व का मामला है
एक तरफ अधिकारी कर्मचारी के लिए भरण पोषण व रोजगार का साधन है तो दूसरी तरफ समाज की भागीदारी का मामला है
इससे समाज को सम्मान मिलता है गौरवान्वित महसूस करता है उसको न्याय की संभावना बढ जाती है आने वाले पीडी के लिए आगे बढने की प्रेरणा मिलती हैं अप्रत्यक्ष रूप से समाज के लिए अधिकारी कमर्चारी एक सुरक्षा कवच का काम करता है इसलिए नौकरियों मे सभी समाजों की भागीदारी होना आवश्यक है
२. ब्राम्हणाें की भागीदारी आजादी के पूर्व, आजादी के समय, आजादी के बाद
अग्रेजों के आने के पहले ब्राम्हणों की भागीदारी १०० प्रतिशत थी
अग्रजो के जाते समय १९४७ ब्राम्हणों की भागीदारी २.५ प्रतिशत रह गयी थी वह भी चतुर्थ श्रेणी में
अग्रेज ब्राम्हणों काे नालायक कहते थे इसलिए उच्च पदों पर नियुक्ती नही देते थे
आजादी के बाद ब्राम्हणों की भागीदारी ७८ प्रतिशत तक पहुच गई
३. मुसलमान औार कायस्थों की भागीदारी आजााादी के समय व आजादी के बाद
आजादी के समय मुसलमान ३५ प्रतिशत नोकरियों में थे
आजादी के बाद मुसलमान १ प्रतिशत से भी कम हो गये
आजादी के समय कायस्थ ४० प्रतिशत नोकरियों में थे
आजादी के बाद कायस्थ १ प्रतिशत से कम हो गये
४. आजादी के बाद नौकरियों में भागीदारी कैसी होनी चाहिए थी
ब्राम्हण की आवादी ३.५ प्रतिशत को ३.५ प्रतिशत नौकरियां दी जानी थी
क्षत्रिय की आवादी ५.५ प्रतिशत को ५.५ प्रतिशत नौकरियां दी जानी थी
वेश्य की आवदी ६ प्रतिशत को ६ प्रतिशत नौकरियां दी जानी थी
एसटी की आवदी ७.५ प्रतिशत को ७.५ प्रतिशत नौकरियां दी जानी थी
अल्प संख्यक की आवदी १०.५ प्रतिशत को १०.५ प्रतिशत नौकरियां दी
जानी थी
एससी की आवदी १५ प्रतिशत को १५ प्रतिशत नौकरियां दी जानी थी
ओबीसी की आवदी ५२ प्रतिशत को ५२ प्रतिशत नौकरियां दी जानी थी
५. आजादी के बाद भागीदारी कैसी हो गई
ब्राम्हण की आवादी ३.५ प्रतिशत को ७८ प्रतिशत नौकरियां दी गई
क्षत्रिय की आवादी ५.५ प्रतिशत को १ प्रतिशत नौकरियां दी गई
वेश्य की आवदी ६ प्रतिशत को १ प्रतिशत नौकरियां दी गई
एसटी की आवदी ७.५ प्रतिशत को ४ प्रतिशत नौकरियां दी गई
अल्प संख्यक की आवदी १०.५ प्रतिशत को १ प्रतिशत नौकरियां दी गई
एससी की आवदी १५ प्रतिशत को ८ प्रतिशत नौकरियां दी गई
ओबीसी की आवदी ५२ प्रतिशत को ७ प्रतिशत नौकरियां दी गई
इस तुलनात्मक विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि
नौकरियों के क्षेत्र में एक बहुत बडी असमानता है।
जहाँ सवर्ण ८० प्रतिशत है, वहीं पिछडे मात्र २० प्रतिशत है।
वह भी परेसान है
६. नौकरियों में किसका, कितना हिस्सा छीना
७. क्रोनी कैपिटलिज्म
क्रोनी कैपिटलिज्म एक पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है जिसमें राजनीतिक नेताओं और सरकारी अधिकारियों के साथ करीबी संबंध रखने वाले व्यक्ति या व्यवसाय बाजार में अनुचित लाभ हासिल करने के लिए अपने राजनीतिक संबंधों का उपयोग करते हैं। जिसको सांठगांठ भी कहते है
पिछडो से प्रधानमंत्री की कुर्शी छीनकर सरदार बल्लभ भाई पटेल की जगह जबाहर लाल नेहरू ब्राम्हण देश का प्रधानमंत्री बने. जिसकी बजह से
ब्राम्हण मुख्यमंत्री बने
ब्राम्हण मंत्री बने
ब्राम्हण राजपाल बने
ब्राम्हण प्रमुख सचिव बने
ब्राम्हण कलेक्टर, एसपी, डीएफओ व अन्य प्रमुख अधिकारी बने
ब्राम्हण वाइसचांसलर बने
ब्राम्हण जगह निकालने बाले
ब्राम्हण प्रोफसर बने
ब्राम्हण भर्ती करने बाले
ब्राम्हण परीक्षा लेने बाले
ब्राम्हण मुख्य न्यायधीश व न्यायधीश बने
ब्राम्हण साक्षात्कार लेने वाले
ब्राम्हण नंबर देने वाले
वेइमानी करने वाले ब्राम्हण
ब्राम्हण न्याय देने वाले
अथव ब्राम्हणों नियंत्रण में काम करने वाले
परीक्षा में पास हो जाते है उन्हे इन्टव्यू में फेल कर दिये जाते हैं
भारतीय संविधान में धारा ३४० होने के बाद भी पिछडे वर्ग को अभी तक नही मिल पायी आनुपातिक भागीदारी
काका कालेलकार आयोग व मण्डल आयोग व अलग अलग राज्यों में अलग अलग आयोग बनने के बाद भी अभी तक सिफारिसे लागू नही की गई
सामान्य के गरीबों के लिए आर्थिक आधार का संविधान में कोई प्रावधान नही फिर भी संविधान संशोधन कर तीन दिन के अंदर लामू कर दिया गया जिसके लिए कोई आयोंग नही बना है
एससी,एसटी,अन्य पिछडे वर्ग एंव अल्प संख्यकों के गरीबों के लिए कोई आरक्षण नही
मध्य प्रदेश में सामान्य की आवदी ४.६ प्रतिशत है
जिसमें गरीबों की आवादी मुश्किल से ०.५ प्रतिशत है
जिसके गरीबों को १० प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है
राष्ट्रीय पिछडा वर्ग आयोग प्रत्येक १० वर्ष में एससी/एसटी/ओबीसी की सूची का पुनरीक्षण कर विकाश के आधार सूची से बाहर निकालना एवं सूची में सम्मिलित करने का कार्य करता हैा जो जातिगत जनगणना नही होने से ठीक से नही हो पा रहा है
सरकारी आदेशों का नौकर पालन नही करते हैं
गडरिया जाति को घुमक्कड में सामिल कर दिया लेकिन उसकी जनसंख्या के अनुापत में कोटा को नही बढाया इसलिए पूर्व से सूची में सम्मिलित जातियां विरोध करने लगी
नीट जैसी परीक्षाऐं आयोजित करना
भ्रष्टाचार से नियुक्ति की जाती है
पिछडों को साक्षतकार में कम नंबर देकर रोका जाता है उपयुक्त नही कह कर डिनोटीफाईड कर दिया जाता है
जाति के आधार पर नंबर देकर फेल कर दिया जाता है जिससे उच्च शिक्षा प्राप्त नही कर पाते हैं जिससे उपलब्ध नही कह कर सीटों को डिनोटी फाइड कर दिया जाता है और फिर पिछले दरवाजे से भर दिया जाता है
उच्च जातियों के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए डोनेशन से एडमीशन मिल जाता है
चोर दरवाजे
कोलेटर इंट्री से भर्ती की जा रही है
संविदा पर नियुक्ति
अस्थाई नियुक्ति कर स्थाई करना
स्टाफ सप्लाई के लिए एजेसिंयां नियुक्त करना
पव्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप पीपीपी मॉडल
प्राइवेटीकरण करके
रेल हवाई जाहाज अस्पताल आदि मे गरीबों को आरक्षण नही दिया जाता है
एक राज्य से दूसरे राज्य में लाभ नही दिया जाता है
अन्य पिछडी जातियों का जातिगत अपमान व शोेषण होता है उसके लिए कोई कानून नही है
बडे पदो पर नियुक्ति की जाती है जिसमें जातिवाद व भाई भतीजावाद के आधार पर नियुक्ति की जाती हे
जाति प्रमाण पत्र नही बनाये जाते हैं
पिछडे वर्ग के लिए आय सीमा ८ लाख और समान्य के लिए १२ लाख रखना
राजस्थान में गुर्जर आंदोलन, हरियाणा में जाट आंदोलन और गुजरात में पाटीदार आंदोलन के बाद भी कुछ नही मिला
प्रत्येक १० वर्ष में एसी,एसटी और ओबीसी की जातियों का अध्यन कर सूची को रिवाइज नही करना
धुमंक्कड और अर्ध घुमंक्कड जातियों के लिए कोई प्रावधान नही करना
क्रीमी लेयर लगा दिया है जिससे गरीब पढ नही सकता है अमीर लाभ ले नही सकता है तो ऐसे में सीटे खाली रह जायेगी तो बाद में डिनोटीफाई कर पिछले दरवाजे से ब्राम्हणों को नियुक्ती कर दी जाती है
छत्रबृति प्रतिमाह भुगतान नही करना और महगाई के अनुपात में छात्रवृति में बृद्धि नही करना
निशुल्क एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध नही करवाना
दोहरी शिक्षा व घाटिया शिक्षा उपलब्श करवाना
शिक्षको को अन्य सरकारी कार्यो मे लगाये रखना जिससे पिछडे व किसानों के बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण कर अच्छे पदों का हासिलन न कर ले
एससी एसटी का आनुपातिक आरक्षण होने के बाद भी अभी तक कोटा परा नही भरा गया
पाइवेट सेक्टर में आरक्षण नही देना
ठेकेदारी मे रिजर्वेशन
फेक्ट्रीयों के लाइसेंसों मे रिजर्वेशन
पेट्रोल पंपो के लाइसेसों मे रिजर्वेशन
बैंको लाइसेंसों मे रिजर्वेशन
८. क्या आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए
२००७ में म0प्र0 के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीशिवराज सिंह चौहान द्धारा राजा मानसिंह की मूर्ति का उदृघाटन ग्वालियर में किया गया था जिससे मूर्ति अछूत हो गई थी जिसे गौमूत्र से धोकर गंगाजल से शुद्ध किया गया था और श्रीशिवराज सिंह चौहान के नाम की पटिृटका बदल कर श्रीनरेन्द्र सिंह तोमर के नाम की लगा दी गई जो आज भी लगी हुई है २०२२ में रैली निकाल कर मां बहन की गालियां दी गई और उनकी मां को अपशब्द कहे गये
रानी अवंतीवाई लोधी की मूर्ति मल्लगढा चौराहा ग्वालियर में लगाने का विरोध किया
गुर्जर प्रतिहार मिहिर भोज की मूर्ति पर गुर्जर लिखने पर विरोध कर रहे हैं
श्रीअखिलेश को टोटी चोर कहा गया और मुख्यमंत्री बंगला को गौ मूत्र से धोकर शुद्ध किया गया
श्रीअधिलेश यादव से मंदिर अपवित्र हो गया जिसकी बजह से पूरे मंदिर को धुलवाया गया
पूर्व राष्ट्रपति महामहिम श्री राजनाथ कोविन्द जी को राजस्थान के पुष्कर ब्रम्हा मंदिर मे प्रवेश नही करने दिया जो कोली जाति के थे
पूर्व उप प्रधानमंत्री श्री जगजीवन राम बनारस संपूर्णनंद की मूर्ति का अनावरण करने गये थे तो उनसे मूर्ति अछूत हो गई थी जिसे गंगाजल से धाेकर शुद्ध किया था
पूर्व मुख्यमंत्री श्री कर्पूरी ठाकुर को मां बहिन की गालियां देकर नारे लगाये कर्पूरी ठाकुर वापस जाओ वापस जाकर बाल बनाओं
१०० मे ९० शोषित हैं शोषितों ने ललकारा हे धन, धरती और राज पाट में, नब्बे भाग हमारा हैा
अपने क्रांतिकारी भाषण देते समय बाबू जगदेव कुशवाह को पुलिस ने गोली मारकर जीप में बांध कर घसीट कर मारा जिन्होने थाने पानी के लिए चिल्लाते चिल्लते अपने प्राण त्याग दिये और पानी की जगह उनके मूह पर पेशा की गई
देश में आज भी लोगों को जाति के नाम पर अपमानित होना पडता है नाम बदलकर काम करना पडता है आज भी जाति देख कर रिस्ते बनाये जाते हैं इस सब समस्याओ के निराकरण के लिए जातिगत जनगणना कराना जरूरी है
कितने भी बडे पद पर पहुचने एवं कितना भी पैसे बाला बनने के बाद भी अपमानित जाति के आधार पर होना पडता है तो आरक्षण भी जाति के आधार पर होना चाहिए
बडे बडे पदो पर चाटुकारों को नियुक्ति मिल जाती है जिससे वह निष्पच्छ काम नही करते है राजनेतिज्ञयो के इसारे पर भर्तिया करते हैं
९. आरक्षण का अर्थ क्या है?
आरक्षण (Reservation) का अर्थ है अपना जगह सुरक्षित करना| प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा हर स्थान पर अपनी जगह सुरक्षित करने या रखने की होती है, चाहे वह रेल के डिब्बे में यात्रा करने के लिए हो या किसी अस्पताल में अपनी चिकित्सा कराने के लिए, विधानसभा या लोकसभा का चुनाव लड़ने की बात हो तो या किसी सरकारी विभाग में नौकरी पाने की।
१०. मनु की आरंक्षण व्यवस्था
ब्राम्हणों के लिए
किसकी कहां पर कितनी भागीदारी होगी यह तय करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था बनाई गई जिसके प्रथम प्रवर्तक मनु है
मनु ने ब्राम्हण को १०० प्रतिशत आरंक्षण देकर सम्पत्ति व धन दौलत का स्वामी बनाया
बडे से बडे पाप दोष के लिए उसे म़त्यु दण्ड नही दिया जा सकता है
पढना-पढाना, यज्ञ करना, दक्षिणा लेना, संस्कृति, विद्या का अध्यन करना, मंदिर देवताओं देवालयों की पूजा करना व करवाना ब्राम्हणों के लिए १०० प्रतिशत आरक्षित कर दिया गया
क्षत्रियों के लिए
प्रजा की रक्षा करना, युद्व करना, राज्य करना व सत्ता का उपयोग करना क्षत्रियों के लिए १०० प्रतिशत आरक्षित कर दिया गया
वेश्यों के लिए
पशुओं की रक्षा करना, कृषि कार्य व्यापार तथा ब्याज लेने का कार्य वेश्यों के लिए १०० प्रतिशत आरक्षित कर दिया गया
शूद्रों के लिए
ब्राम्हण, क्षत्रिय एवं वेश्यों की सेवा दासता, गुलामी करना शूद्र का प्रमुख व एक मात्र कर्तव्य निर्धारित कर दिया गया
शूद्र को सभी प्रकार के समाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से १०० प्रतिशत बंचित कर दिया गया
८५ प्रतिशत बहुजन मूल निवासी समाज को सभी हक अधिकारों से बंचित रख कर हजारों सालों तक देश में शासन सत्ता चलती रही
हक अधिकार पाने के लिए समय समय पर संधर्ष व प्रयास होते रहे लेकिन सफलता नही मिली
११ पिछडे वर्ग को आरक्षण की आवश्यकता क्यों?
देश में पिछड़ी जातियों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करना ।
पिछड़े वर्ग के लिए समान अवसर उपलब्ध कराना , क्योंकि वे उन लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते, जिनके पास सदियों से संसाधनों और साधनों तक पहुंच रही है।
राज्य के अधीन सेवाओं में पिछड़े वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना ।
पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए ।
योग्यता के आधार पर समानता सुनिश्चित करना अर्थात योग्यता के आधार पर न्याय करने से पहले सभी लोगों को समान स्तर पर १२. भारत में पिछडों के लिए आरक्षण की शुरूआत एवं इसके
विभिन्न चरण
भारत में पिछडों के आरक्षण की शुरूआत 1882 में हंटर आयोग के गठन के साथ हुई थी
उस समय विख्यात समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले ने सभी के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा तथा अंग्रेज सरकार की नौकरियों में आनुपातिक आरक्षण/प्रतिनिधित्व की मांग की थी।
लाया जाना चाहिए।
लाया जाना चाहिए।
१२. भारत में पिछडों के लिए आरक्षण की शुरूआत एवं इसके विभिन्न चरण
भारत में पिछडों के आरक्षण की शुरूआत 1882 में हंटर आयोग के गठन के साथ हुई थी
उस समय विख्यात समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले ने सभी के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा तथा अंग्रेज सरकार की नौकरियों में आनुपातिक आरक्षण/प्रतिनिधित्व की मांग की थी।
१३. पिछडों बंचितों को क्षेत्रिय स्तर पर भागीदारी देने का प्रयास
१८९५ में मैसूर देशी रियासत में पुलिस विभाग में ब्राम्हण, मुसलमान व अन्य हिन्दू जातियों को जनसंख्या के अनुपात में सरकारी सेवाओं में स्थान आरक्षित किये गये
फिर भी स्थिति नही सुधरी तब मैसूर महाराज ने तत्कालीन उच्च न्यायधीश सर एल;सी; मिलर की उध्यक्षता में मिलर समिति नियुक्त की
मिलर समिति ने पिछडा वर्ग की परिभाषा जाति एवं वर्ग के आधार पर किया तथा उसमें मुसलमानों की ऐसी जातियों को भी सामिल किया जिनका प्रतिनिधित्व सरकारी सेवाओं में नही था
मद्रास सरकार द्वारा १८८५ में सहायक अनुदान संहिता बनाकर दलित वर्ग के विद्यार्थियों को छात्रवृति देना सुरू किया और १९२९ में सरकारी सेवाओं में प्रतिनिधित्व देने के लिए कदम उठाया
• 1891 के आरंभ में त्रावणकोर के सामंती रियासत में सार्वजनिक सेवा में ब्राम्हणों की अनदेखी करके विदेशियों को भर्ती करने के खिलाफ प्रदर्शन के साथ सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए मांग ब्राम्हणों द्वारा की गयी।
शाहूजी महाराज ने 1901 में जातिगत जनगणना करवाई और आरक्षण व्यवस्था लागू की. इसके परिणाम स्वरूप 1912 में कुल 95 पदों पर गैर ब्राह्मण अधिकारियों की संख्या 60 हो गई. शाहूजी महाराज ज्योतिबा फुले से बहुत प्रभावित थे
1921 में मद्रास प्रेसीडेंसी ने जातिगत सरकारी आज्ञापत्र जारी किया, जिसमें गैर-ब्राह्मणों के लिए 44 प्रतिशत, ब्राह्मणों के लिए 16 प्रतिशत, मुसलमानों के लिए 16 प्रतिशत, भारतीय-एंग्लो/ईसाइयों के लिए 16 प्रतिशत और अनुसूचित जातियों के लिए 8 प्रतिशत कुल १०० प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई थी|
1908 में अंग्रेजों द्वारा बहुत सारी जातियों और समुदायों के पक्ष में, प्रशासन में जिनका थोड़ा-बहुत हिस्सा था, के लिए आरक्षण शुरू किया गया|
1909 में भारत सरकार अधिनियम में धार्मिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान किया गया|
१४. अखित भारतीय स्तर पर पिछडे बंचितो को अधिकार
१४.१. साउथ ब्यूरो कमीशन
1917 में अंग्रेजो ने एक एक कमेटी का गठन किया था,, जिसका नाम था साउथ व्यूरो कमिशन,, जो कि भारत के हजारों सालों से वंचित इन 85% लोगों को हक अधिकार देने के लिए बनाया गया था,,
उस समय ओबीसी की तरफ से शाहू महाराज ने भास्कर राव जाधव को,, और एससी एसटी की तरफ से डॉक्टर अम्बेडकर को इस कमीशन के समक्ष अपनी मांग रखने के लिए भेजा।।*
१९१९ में मान्टेग्यू चेम्स फोर्ड रिर्फाम्स द्वारा दलित, आदिवासी एवं अन्य पिछडे वर्गों को सरकारी निकायों में प्रथमवार प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया
1919 में भारत सरकार अधिनियम में जाति के आधार पर आरक्षण का प्रावधान किया गया|
1919 में अंग्रजों ने एक बात कहीं कि भारत के ब्राह्मणों में भारत की बहु संख्यक लोगों के प्रति न्यायिक चरित्र नहीं है
इसलिए १९१९ अग्रेजों ने ब्राम्हणों को न्यायाधीश बनने पर प्रतिबंध लगा दिया
अग्रेज ब्राम्हणों को मुख्य पदो पर नियुक्ती नही देते थे वे इन्हे नालायक कहते थे
१४.२. साइमन कमीशन
1927 में साइमन कमीशन 10 साल बाद फिर से भारत में एक ओर सर्वे करने आया,, कि इन मूलनिवासी लोगों को भारत छोड़ने से पहले अलग अलग क्षेत्र में उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए,,,*
तीन शख्स थे जिन्होंने साइमन कमीशन का स्वागत भी किया था ।
*1- ओबीसी से चौधरी सर छोटूराम जी। जो पंजाब से थे।*
*2- एससी से डॉक्टर बी आर अम्बेडकर। जो महाराष्ट्र से थे।*
*3- ओबीसी शिव दयाल चौरसिया जो यूपी से थे।।*
जिसकी वजह से गोलमेज सम्मेलन में हम भारत के हजारों सालों से शिक्षा,, ज्ञान,, विज्ञान,, तकनीक,, संपति,, और बोलने सुनने और पढ़ने लिखने से वंचित किए गए लोगों और उस समय के राजा महाराजाओं की ओकात ”वोट का अधिकार” देकर एक बराबर कर दी,,
* साइमन का विरोध करके हमारे हक अधिकार का कोन लोग विरोध कर रहे थे।।*
*1- कर्मचंद गांधी गुजरात का गोड बनिया।*
*2- जवाहर लाल नेहरू कश्मीरी ब्राह्मण।*
*3- लाला लाजपतराय पंजाब के ब्राह्मण।।*
*4- आरएसएस के संस्थापक डॉक्टर केशव बली हेडगवार ब्राह्मण और पूरी की पूरी आरएसएस लाबी ।।*
*ये लोग इसलिए विरोध कर रहे थे,, क्योंकि इनकी संख्या भारत में मुश्किल से 10% है और इनको ग्राम पंचायत का पंच नहीं चुना जा सकता,, इसलिए 90% एससी, एस टी और ओबीसी के वोट के अधिकार का,, शिक्षा,, संपति और अलग अलग क्षेत्र में प्रतिनिधित्व का विरोध कर रहे थे।।*
बाल गंगाधर तिलक कहते थे कि ”तेली,, तंबोली,, कुर्मी कुनभट्टों को संसद में जाकर क्या हल चलाना है।”
*इस साइमन कमिशन में 7 लोगों की एक आयोग की तरह कमेटी थी,, जिसमे सब संसदीय लोग थे।।*
*गांधी ने लोगों को ये कहकर विरोध करवाया कि इसमें एक भी सदस्य भारतीय नहीं है,, दूसरे अर्थों में गांधी ये कहना चाहता था,, कि इस कमिशन में ब्राह्मण बनियों को क्यों नहीं लिया।।*
*क्योंकि गांधी ने मरते दम तक एक भी ओबीसी के आदमी में सविधान सभा में नहीं पहुंचने दिया,,
इसलिए बाबा साहब ने ओबीसी के लिए आर्टिकल 340 बनाया और संख्या के अनुपात में हक अधिकार देने का प्रावधान किया।।*
*लेकिन क्या हम ओबीसी,, एससी एस टी अपने वोट की कीमत आज तक जान पाए,, कभी नहीं जान पाए,, इसलिए हम आज भी 3% लोगों के गुलाम है।।*
*अत: हमें मालुम होना चाहिये हमारा इतिहास वो नहीं है जो हमे पढ़ाया जाता रहा है,, बल्कि वो है जो हम से छुपाया जाता रहा है।।*
अब भी अगर अपना इतिहास नही जानोगे तो समाज का सही मार्ग दर्शन नही हो पाएगा ।*
अन्य पिछडे वर्ग का प्रतिनिधित्व सरदार बल्लभाई पटेल कर रहे थे जो पिछडे वर्ग के लिए हक मांगने की जगह उल्टा आरक्षण का विरोध कर रहे थे वह अन्य पिछडे वर्ग के हको के लिए गोलमेज सम्मेलन नही गये और ना ही किसी को प्रतिनिधि नियुक्त किया जिसकी सजा अन्य पिछडा वर्ग आज तक भोग रहा है वह ब्राम्हणवादियों के पिछलग्गू बने रहे
1935 के भारत सरकार अधिनियम में एससी एसटी के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था| लेकिन अन्य पिछडा वर्ग सरदार वल्लभ भाई पटेल के कारण अधिकारों से वचित रह गया
1942 में बी. आर. अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के समर्थन के लिए अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ की स्थापना की| उन्होंने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग की|
1946 के कैबिनेट मिशन प्रस्ताव में अन्य कई सिफारिशों के साथ आनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव दिया गया था|
सामाजिक व शैक्षणिक दष्टि से पिछडे वर्ग एवं समूह की शिक्षा के क्षेत्र में विशेष सुविधायें व शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश हेतु आरक्षण तथा शासकीय नौकरियाें में आरक्षण की व्यवस्था उनका संवैधानिक मूल अधिकार है
जांच व अन्य प्रकार से सावित हो जाने पर ” कोई जाति वर्ग व समूह सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछडा है तथा शिक्षण संस्थाओं में व शासकीय सेवाओं में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नही है तो उनको भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 . 4 एवं 16. 4 के अनुसार आरक्षण की पात्रता उत्पन्न हो जाती है
इसलिए जातिगत जनगणना नही कराना चाहते हैं
१४.३. काका कालेलकर आयोग
• 1953 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए कालेलकर आयोग का गठन किया गया था| इस आयोग के द्वारा सौंपी गई अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया, लेकिन अन्य पिछड़ी जाति (OBC) के लिए की गयी सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया गया|
१४.४. मण्डल आयोग
§ संविधान के अनुच्छेद 340 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति ने दिसंबर 1978 में बी.पी. मंडल की अध्यक्षता में पिछड़ा वर्ग आयोग की नियुक्ति की।
§ आयोग का गठन भारत के “सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों” को परिभाषित करने के मानदंड निर्धारित करने और उन वर्गों की उन्नति के लिए उठाए जाने वाले कदमों की सिफारिश करने के लिए किया गया था।
इस आयोग के पास अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के बारे में कोई सटीक आंकड़ा नही था और इस आयोग ने ओबीसी की 52% आबादी का मूल्यांकन करने के लिए 1930 की जनगणना के आंकड़े का इस्तेमाल करते हुए पिछड़े वर्ग के रूप में 1,257 समुदायों का वर्गीकरण किया था|
1980 में मंडल आयोग ने एक रिपोर्ट पेश की और तत्कालीन कोटा में बदलाव करते हुए इसे 22..5% से बढ़ाकर 49.5% करने की सिफारिश की| 2006 तक पिछड़ी जातियों की सूची में जातियों की संख्या 2297 तक पहुंच गयी, जो मंडल आयोग द्वारा तैयार समुदाय सूची में 60% की वृद्धि है।
1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा सरकारी नौकरियों में लागू किया गया।
§ मंडल आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि भारत की जनसंख्या में लगभग 52 प्रतिशत ओबीसी हैं, इसलिए 27% सरकारी नौकरियां उनके लिए आरक्षित की जानी चाहिए।
§ आयोग ने सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन के ग्यारह संकेतक विकसित किए हैं।
§ हिंदुओं में पिछड़े वर्गों की पहचान करने के अलावा, आयोग ने गैर-हिंदुओं (जैसे, मुस्लिम, सिख, ईसाई और बौद्ध) में भी पिछड़े वर्गों की पहचान की है।
इसने 3,743 जातियों की अखिल भारतीय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) सूची तथा 2,108 जातियों की अधिक वंचित “दलित पिछड़ा वर्ग” सूची तैयार की है।
2006 से केंद्रीय सरकार के शैक्षिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण शुरू हुआ।
१५. आरक्षण के प्रकार
जाति आधारित आरक्षण
केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित उच्च शिक्षा संस्थानों में उपलब्ध सीटों में से अनुसूचित जातियों के लिए 15%, अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5%,| ओबीसी के लिए अतिरिक्त 27% आरक्षण को शामिल करके आरक्षण का यह प्रतिशत 49.5% तक बढ़ा दिया गया है|
इसके अलावा, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों के लिए केवल 50% अंक लाना अनिवार्य है।
प्रबंधन कोटा
इसमें निजी महाविद्यालय प्रबंधन की अपनी कसौटी के आधार पर तय किये गये विद्यार्थियों के लिए 15% सीट आरक्षित कर सकते हैं।
लिंग आधारित आरक्षण
महिलाओं को ग्राम पंचायत (जिसका अर्थ है गांव की विधानसभा, जो कि स्थानीय ग्राम सरकार का एक रूप है) और नगर निगम चुनावों में 33% आरक्षण प्राप्त है। बिहार जैसे राज्य में ग्राम पंचायत में महिलओं को 50% आरक्षण प्राप्त है|
संसद एवं विधानमंडल में महिलाओं को 33% आरक्षण देने के उद्देश्य से “महिला आरक्षण विधेयक” को पारित किया गया था,
धर्म आधारित आरक्षण
तमिलनाडु सरकार ने मुसलमानों और ईसाइयों के लिए 3.5-3.5% सीटें आवंटित की हैं,
केंद्र सरकार ने अनेक मुसलमान समुदायों को पिछड़े मुसलमानों में सूचीबद्ध कर रखा है, इससे वे आरक्षण के हकदार होते हैं।
राज्य के स्थायी निवासियों के लिए आरक्षण
कुछ अपवादों को छोड़कर, राज्य सरकार के अधीन सभी नौकरियां उस राज्य में रहने वाले सभी निवासियों के लिए आरक्षित होती हैं।
पूर्वस्नातक के लिए आरक्षण
जिन्होंने जेआईपीएमईआर (JIPMER) से एमबीबीएस (MBBS) पूरा किया है| (एम्स) में इसके 120 स्नातकोत्तर सीटों में से 33% सीट 40 पूर्वस्नातक छात्रों के लिए आरक्षित हुआ करती हैं
आरक्षण के लिए अन्य मानदंड
• स्वतंत्रता सेनानियों के बेटे/बेटियों/पोते/पोतियों के लिए आरक्षण
• शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति के लिए आरक्षण
• खेल हस्तियों के लिए आरक्षण
• सेवानिवृत सैनिकों के लिए आरक्षण
• शहीदों के परिवारों के लिए आरक्षण
• अंतर-जातीय विवाह से पैदा हुए बच्चों के लिए आरक्षण
• सरकारी उपक्रमों/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में उनके कर्मचारियों के बच्चों के लिए आरक्षण|
• वरिष्ठ नागरिकों/पीएच (PH) के लिए सार्वजSनिक बस परिवहन में सीट आरक्षण|
१६. भारत में आरक्षण को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक प्रावधान
§ भाग XVI केन्द्रीय एवं राज्य विधानमंडलों में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण से संबंधित है।
§ संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) राज्य और केंद्र सरकारों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए सरकारी सेवाओं में सीटें आरक्षित करने का अधिकार देते हैं।
• संविधान के भाग तीन में समानता के अधिकार की भावना निहित है। इसके अंतर्गत अनुच्छेद 15 में प्रावधान है कि किसी व्यक्ति के साथ जाति, प्रजाति, लिंग, धर्म या जन्म के स्थान पर भेदभाव नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 15(4) के मुताबिक यदि राज्य को लगता है तो वह सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है।
संसद ने 77 वां संविधान संशोधन अधिनियम १९९५ पारित करके प्रतिक्रिया व्यक्त की , जिसमें अनुच्छेद 16(4ए) जोड़ा गया।
§ यह अनुच्छेद राज्य को सार्वजनिक सेवाओं में पदोन्नति में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के पक्ष में सीटें आरक्षित करने की शक्ति प्रदान करता है, यदि इन समुदायों का सार्वजनिक रोजगार में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
§ बाद में, आरक्षण देकर पदोन्नत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को परिणामी वरिष्ठता प्रदान करने के लिए संविधान (85 वें संशोधन) अधिनियम, 2001 द्वारा खंड (4ए) को संशोधित किया गया।
§ संविधान के 81 वें संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा अनुच्छेद 16 (4 बी) को शामिल किया गया , जो राज्य को किसी वर्ष की उन रिक्तियों को, जो अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं, अगले वर्ष भरने का अधिकार देता है, जिससे उस वर्ष की कुल रिक्तियों पर पचास प्रतिशत आरक्षण की अधिकतम सीमा समाप्त हो जाती है ।
§ अनुच्छेद 243डी प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण प्रदान करता है।
§ अनुच्छेद 233टी प्रत्येक नगर पालिका में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
§ संविधान के अनुच्छेद 335 में कहा गया है कि प्रशासन की प्रभावकारिता बनाए रखने के लिए अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावों पर विचार किया जाएगा।
§ 2019 के संवैधानिक (103 वें संशोधन) अधिनियम ने अनारक्षित श्रेणी में “आर्थिक रूप से पिछड़े” लोगों के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10% आरक्षण प्रदान किया है।
§ यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करके सरकार को आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण प्रदान करने का अधिकार प्रदान करता है।
§ यह 10% आर्थिक आरक्षण, 50% आरक्षण सीमा के अतिरिक्त है।
१७. आरक्षण की न्यायिक जांच
§ मद्रास राज्य बनाम श्रीमती चम्पकम दोराईराजन (1951) मामला आरक्षण के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय का पहला बड़ा फैसला था। इस मामले के कारण संविधान में पहला संशोधन किया गया।
§ सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में कहा कि राज्य के अधीन रोजगार के मामले में अनुच्छेद 16(4) पिछड़े वर्ग के नागरिकों के पक्ष में आरक्षण का प्रावधान करता है, जबकि अनुच्छेद 15 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
§ मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसरण में संसद ने खंड (4) जोड़कर अनुच्छेद 15 में संशोधन किया।
§ 1992 के इंद्रा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत कोटा बरकरार रखा, लेकिन उच्च जातियों के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 10% सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की सरकारी अधिसूचना को रद्द कर दिया।
§ इसी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस सिद्धांत को भी बरकरार रखा कि कुल आरक्षण लाभार्थियों की संख्या भारत की जनसंख्या के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
§ इस निर्णय के माध्यम से ‘क्रीमी लेयर‘ की अवधारणा को भी बल मिला तथा प्रावधान किया गया कि पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण केवल प्रारंभिक नियुक्तियों तक ही सीमित होना चाहिए तथा पदोन्नति तक नहीं बढ़ाया जाना चाहिए।
§ न्यायालय ने कहा है कि ओबीसी की क्रीमी लेयर को आरक्षण के लाभार्थियों की सूची से बाहर रखा जाना चाहिए, पदोन्नति में आरक्षण नहीं होना चाहिए; तथा कुल आरक्षित कोटा 50% से अधिक नहीं होना चाहिए।
• 12 अगस्त 2005 को उच्चतम न्यायालय ने पी. ए. इनामदार और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य के मामले में 7 जजों द्वारा सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए घोषित किया कि राज्य पेशेवर कॉलेजों समेत सहायता प्राप्त कॉलेजों में अपनी आरक्षण नीति को अल्पसंख्यक और गैर-अल्पसंख्यक पर नहीं थोप सकता है।
लेकिन इसी साल निजी शिक्षण संस्थानों में पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए आरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए 93वां सांविधानिक संशोधन लाया गया। इसने अगस्त 2005 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को प्रभावी रूप से उलट दिया|
10 अप्रैल 2008 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी धन से पोषित संस्थानों में 27% ओबीसी (OBC) कोटा शुरू करने के लिए सरकारी कदम को सही ठहराया|
इसके अलावा न्यायालय ने स्पष्ट किया कि “क्रीमी लेयर” को आरक्षण नीति के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए|
§ एम. नागराज बनाम भारत संघ 2006 मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 16(4ए) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि किसी भी आरक्षण नीति को संवैधानिक रूप से वैध होने के लिए निम्नलिखित तीन संवैधानिक आवश्यकताओं को पूरा करना होगा:
o अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा होना चाहिए।
o सार्वजनिक रोजगार में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है ।
o ऐसी आरक्षण नीति से प्रशासन की समग्र दक्षता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा
§ 2018 के जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामले में , सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि पदोन्नति में आरक्षण के लिए राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पिछड़ेपन पर मात्रात्मक डेटा एकत्र करने की आवश्यकता नहीं है।
§ न्यायालय ने कहा कि क्रीमी लेयर का बहिष्कार अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति तक फैला हुआ है, इसलिए राज्य उन अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को पदोन्नति में आरक्षण नहीं दे सकता जो अपने समुदाय के क्रीमी लेयर से संबंधित हैं।
§ मई 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक कानून को बरकरार रखा , जो परिणामी वरिष्ठता के साथ एससी और एसटी के लिए पदोन्नति में आरक्षण की अनुमति देता है।
१८. सुझाव
जातिगत जनगणना कराकर प्रत्येक जातिक की
आनुपातिक भागीदारी सुनिश्चित करें
जबतक कोटा पुरा नही हो जाता है तब तक उस जाति के कोटे में कोई कंपटीशन नही होना चाहिए
उस जाति के केण्डिडेट कोटा से अधिक आते है तो गरीब को प्राथमिकता दी जाय
चक्रीय क्रम में पदों का आरक्षण किया जाय
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, पमुख सचिव, सचिव, डीजीपी, मुख्य न्यायाधीश व जिला जज, कलेक्टर, एसपी, डीएफओ आदि जिला लेविल अधिारियों के सभी पदों का चक्रीय क्रम में आरंक्षण किया जाय
इसी प्रकार एमएलए, एसपी का भी चक्रिय क्रम में पंचायतों की तरह आरक्षण होना चाहिए जाे पंचायती राज व्यवस्था में संबैधानिक रूप से स्वीकार्य है
देश में जनसंख्या के अनुपात में अनुसूचित जाति एवं जन जाति को आरक्षण दिया गया है संबिधान में जनसंख्या के अनुपात का सिद्धांतत: स्वीकार किया गया है जो जनसंख्या के अनुपात में सभी को आरक्षण दे देना चाहिए महाराष्ट्र मे १९२१ में १०० प्रतिशत आरक्षण दिया गया था
१९ निष्कर्ष:
जब तक सभी जातियों को नौकरियों में समान भागीदारी नहीं मिलती, तब तक समाज में वास्तविक समानता प्राप्त नहीं की जा सकती।
नौकरियों के क्षेत्र में जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने और ब्राम्हणों के वर्चस्व को तोड़ने के लिए समग्र और सतत प्रयासों की जरूरत है। इसके लिए कानूनी सुधार, शिक्षा और सामाजिक जागरूकता अभियान आवश्यक हैं।