डी के खापर्डे जी ने कैसे ब्राम्हणवाद की जडे हिलाई
मान्यवर डीके खापर्डे जी का जन्म १३ मई १९३९ को नागपुर महाराष्ट्र में हुआ था नागपुर से ही बीएससी की डिग्री प्राप्त कर गोला बारूद की फेक्ट्री में डिफेंस की नौकरी जॉइन कर ली.
गोला बारूद की फैक्ट्री रक्षा अनुसंधान एवं विकाश संगठन डिफेंस रिसर्च एवं डवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन डीआरडीओ जो रक्षा विभाग के अंतर्गत आता है जिसमें डी के खापर्डे जी ने नौकरी जॉइन की
मान्यवर डी के खपर्डे जी मजदूर परिवार से थे
डी के खापर्डे जी की माॅ
डी के खापर्डे जी की मॉं के पेट में दर्द रहता था तो वह उपना पेट कपडे से बांध कर मजदूरी करने जाती थी डी के खापर्डे साहव को यह बात अच्छी नही लगती थी डी के खापर्डे साहव ने अपनी मां से कहा आपके इस हालत में काम करते देख कर मुझे अच्छा नही लगता है आप काम करना बंद कर दो में काम करने लगता हूं तो मां कहती थी बेटा दो चार साल की तो बात है आप पढ लिख कर बडा आदमी बन जाओ. जब डी के खपर्डे जी ने अपनी मां से पूछा कितना बडा आदमी बन जाउं तो उनकी मां कहा डॉक्टर अंबेडकर जैसा बन जाओं. डी के खापर्डे साहब कहते थे में डॉक्टर अबेडकर जैसा बडा आदमी तो नही बन सका लेकिन एक अच्छा आदमी बन जाउं तो भी बहुत है में एक अच्छा आदमी बनना चहता हूं.
रक्षा अनुसंधान एवं विकाश संगठन संस्थान में नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 के अनुसार संस्थान के प्रमुख को कैलेंडर वर्ष प्रारंभ होने के पूर्व में संस्थान की सभी यूनियनों की बैठक कर पूरे वर्ष के लिए छुट्टियां तय करना होता था जिसके लिए वर्ष १९६४ में सभी यूनियनों की बैठक बुलाई गई. चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संध के प्रतिनिधि मान्यवर दीना भाना जी कर रहे थे अन्य ज्यादातर यूनियनों का प्रतिनिधित्व ब्राह्मणों द्वारा किया जा रहा था सभी ने अपने पूर्वजों की जयंती जैसे होली, दशहरा, दीवाली आदि त्योहारों के अवसरों पर छुट्टियों के लिए अनुरोध किया। बैठक की कार्यवाही मिनट रजिस्टर में दर्ज की गई और सभी को हस्ताक्षर के लिए कहा गया
डॉ.अंबेडकर जयंती की छुट्टी
मा.दीना भाना जी की बारी आई तो उन्होंने इंकार कर दिया और कहा कि मैं 14 अप्रैल डॉ.अंबेडकर जयंती की छुट्टी चाहता हूँ।
संस्थान प्रमुख (महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण) ने कहा कि तुम महाराष्ट्रीयन नहीं हो। तुम्हें डॉ.अंबेडकर से क्या लेना? दीनाभानाजी के हस्ताक्षर न होने से समस्या खड़ी हो गई।
संस्थान प्रमुख ने दबाव में लेना शुरू कर दिया और कहा तुम ज्यादा मत बोलो। तुम्हें तो बोलने का भी अधिकार नहीं। क्या तुम कानून जानते हो?
मा. दीनाभाना ने जवाब दिया कि बोलने का अधिकार मुझे संविधान के माध्यम से मिला है
संस्थान प्रमुख ने डॉ.अंबेडकर को गाली देना शुरू कर दिया और कहा तुम्हारा अंबेडकर महादुष्ट था ऐसा कहने पर झगड़ा हो गया। मा. दीनाभाना को सस्पेंड कर दिया गया।
मान्यवर कांशीराम जी ने देखा कि एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने अंबेडकर जयंती के लिए अपनी नौकरी दांव पर लगा दी. तो वह दीना भाना जी से मिले और पूछा कौन है डॉक्टर अंबेडकर जिसके लिए आपने नौकरी दांव पर लगा दी. कांशीराम जी प्रथम क्लास अधिकारी थे लेकिन वह डॉक्टर अंबेडकर जी के बारे में कुछ नही जानते थे दीनाभाना जी ने डी के खपर्डे जी से मिलवाया. डी के खापर्डे जी ने एन्हीलेशन ऑफ कास्ट किताव कांशीराम जी को दी जिसको उन्होने एक रात में तीन बार पडा तो उन्हे पूरी रात नीद नही आई.
दीनाभाना जी की लड़ाई में मा. डी. के. खापर्डे और मा.कांशीराम ने बहुत मदद की।
संस्थान के निदेशक ने कांशीराम जी को भी सस्पेंड कर दिया तथा मान्यवर डी.के खापर्डे को दक्षिण भारत के कार्यालय में स्थानातंरण कर दिया।
इसी समय एक और दर्दनांक घटना घटी। पूना से तीस किलोमीटर दूर एक गांव में दबंग जाति के लोगोंं ने अछूत जाति की कुछ महिलाआें को पूरे गांव में नंगा घुमाकर अपमानित किया। इसकी सूचना मिलने पर मान्यवर कांशीराम तथा मान्यवर डी.के खापर्डे सहित 10 आदमियों की एक टीम उस गांव पहुंची, पीड़ित व्यक्तियों से मिले तथा उनकी हिम्मत बढ़ाई। यह संघर्ष ही बामसेफ के जन्म का कारण बना?
दीना भाना जी के लिए न्याय के लिए लडते लडते तीनों ने मिलकर १९७१ में बामसेफ की नीव रखी . जिसका पूरा नाम है द ऑल इंण्डिया बेकवर्ड एण्ड माइनोरिटी इम्पलोइज फेडरेशन. बी से बेकवर्ड, ए से एण्ड, एम से माइनोरिटी, ई से इम्पलोइज, एफ से फेडरेशन.
6 दिसम्बर 1973 को पूना मे किया बामसेफ की आवधारण तय की कि-
१. समाज की गैर राजनैतिक जड़े अर्थात सामाजिक जडे मजबूत करने के लिए
बामसेफ को कार्य करना है.
२. बामसेफ को समाज के दिमाग (Brain) का काम करना चाहिए और समाज
से गाइड होने के बजाय उन्हे समाज को गाइड करना चाहिए”।
BAMCEF का आधिकारिक शुभारंभ 6 दिसंबर 1978 को डा.बीआर अंबेडकर की पुण्य तिथि पर दिल्ली में आयोजित एक सम्मेलन में हुआ।
6 दिसंबर 1981 को डा.बीआर अंबेडकर की पुण्य तिथि पर डीएस-4 या DSSSS दलित शोषित समाज संघर्ष समिति का जन्म हुआ
मान्यवर कांशी राम ने 1984 राजनीति के क्षेत्र मे कदम रखा
1985 में कांशीराम जी बामसेफ से अलग हुए
१९८६ में कांशीराम जी ने वामसेफ को खारिज कर दिया
१९८६ में कांशीराम जी ने वामसेफ को खारिज कर दिया
डी के खापर्डे जी ने की पुन: बामसेफ की स्थापना
बामसेफ की नींव रखने वाले डी के खापर्डे जी, अन्य संस्थापक सदस्य एवं कार्यकर्ताओं के लिए बहुत गहरा सदमा था। बहुत सारे कार्यकर्ताओं के सामने संभ्रम की स्थिति निर्माण हुयी और वे निराशा की गर्त में डुब गये थे। तभी डी के खापर्डे जी ने बामसेफ का पुनःर्निर्माण करने का निश्चय करते हुए पंजाब के ही दूसरे साथी मा. तेजिंदर सिंह झल्ली और अन्य साथियों को साथ लेते हुए बामसेफ संगठन का पंजीकरण कर दिया और सरदार तेजिंदर सिंह झल्ली को बामसेफ का अध्यक्ष बनाया गया।
बामसेफ आज एक मिशन है… एक परिवार है और उसकी वजह है डी के खापर्डे साहेब
बामसेफ ने जातियों को जोड़ने के लिए 6743 जातियों में बटे समाज को ध्रुवीकरण के लिए कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया।
बामसेफ ने बहुजन पहचान को इतनी ताकत दी की उससे बहुजन राजनीति खड़ी हुयी। खापर्डे साहेब ने इस बहुजन पहचान के साथ राष्ट्रपिता ज्योतिबा फूले साहेब द्वारा बताई गयी मूलनिवासी पहचान को जोड़कर और तेजधार और ताकतवर बनाया गया।
डी के खापर्डे साहब और मान्यवर कांशीराम मे मतभेद
मान्यवर कांशीराम ने, राजनीति को महत्व दिया कि राजनीतिक सत्ता समस्त सामाजिक प्रगति की कुंजी है।
डी के खापर्डे साहब और मान्यवर कांशीराम साहब के अन्य साथी इस सोच के थे कि पहले सामाजिक आन्दोलन को इतना सशक्त बनाया जाये कि उसकी परिणति, जो निश्चित रूप से व्यवस्था परिवर्तन को रोका न जा सके।
मान्यवर कांशीराम साहब जहां आजीवन राजनीति के क्षेत्र मे सक्रिय रहें
वही डी के खापर्डे साहब अपने जीवन के अंतिम क्षणो तक सामाजिक आंदोलन को स्थापित करने और उसे मजबूत करने के प्रति आजीवन समर्पित रहे।
दोनों आंदोलनो का उद्देश्य दोनों आंदोलनो का उद्देश्य व्यवस्था परिवर्तन है।
सामाजिक आंदोलन के महत्व
डी के खापर्डे साहब के सामाजिक आंदोलन के महत्व को बाबा साहब के कथन से समझ सकते है बाबा साहब ने कहा है कि
“राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं है और एक समाज सुधारक जो सामाजिक अत्याचार को चुनौती देता है वो राजनीतिक अत्याचार करने वाली सरकार को चुनौती देने वाले राजनीतिज्ञ से कहीं अधिक साहसी हैं
डी. के. खापर्डे ने
1987 मे अपने समान विचारधाराओं के साथियों के साथ व्यवस्था परिवर्तन के उद्देश्य को लेकर, स्वतन्त्र रूप से बामसेफ को चलाने की योजना बनायीं और उन्होंने डिफेन्स की अपनी नौकरी से रिजाइन कर दिया।
बामसेफ ने क्या किया
डी के खपर्डे साहव कहते थे कि बामसेफ द्वारा ऐसा मानव संसाधन तैयार करना जो की फुले-आंबेडकर की विचार धारा के अनुरूप सोच सके, अपने आप मे रिवोलुसन है नि;संदेह, बामसेफ ने सामाजिक आन्दोलन की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है इसके लिए खापर्डे साहेब का योगदान महान है और निश्चय ही स्मरणीय है।
सामाजिक परिवर्तन
राजनीतिक परिवर्तन
यही व्यवस्था परिवर्तन का क्रम है।
व्यवस्था परिवर्तन के लिए चार पूर्व शर्ते है।
१ एक समान उद्देश्य
२. एक विचारधारा
विचारधारा गांधीवाद, लोहिया वाद, साम्यवाद या मार्क्स वाद नहीं हो सकती है। केवल फुले-अंबेडकरवाद ही हो सकती है।
३. लीडरशिप निर्माण करना।
४. ध्रुवीकरण
आज राजनीतिक सत्ता मे बड़े पैमाने पर ओबीसी के लोग आयें है
लेकिन फिर भी व्यवस्था परिवर्तन नहीं हो रहा है क्योकि इस राजनीतिक सत्ता का प्रयोग व्यवस्था बदलने के लिए नहीं बल्कि उसे कायम रखने के लिए ही किया जा रहा है। डी के खापर्डे साहब का मानना था कि विचार में परिवर्तन हुए बिना आचरण में परिवर्तन संभव नहीं है यदि विचार में परिवर्तन नहीं होता है तो हमारा आदमी भी यदि पोजीसन ऑफ़ पावर पर पहुचता है तो वह ब्राह्मणवादी एजेंडा को ही आगे बढ़ाने में लगा रहता है. फुले-अंबेडकरी विचारधारा का प्रचार प्रसार करने मे तीन बांते आवस्यक होती है
1- बौद्धिक योग्यता
2- ईमानदारी
3- सामाजिक प्रतिबद्धता
उनका यह भी कहना था कि अच्छे विचार, अच्छे गुण, अच्छा चरित्र यह तीन बांते जो लोग खुद मे निर्माण करेंगे वही लोग आंदोलन को चला संकेंगे। आदमी के काबिल होने के साथ उसका ईमानदार होना भी जरूरी है। बेईमान आदमी कितना भी होशियार हो पर कभी-न कभी तो धोखा कर ही देता है।
डी.के.खापर्डे साहेब हमेशा कहते थे कि, जब संगठन और व्यक्ति में टकराव हो तो व्यक्ति का साथ छोड़ देना चाहिए और संगठन के साथ रहना चाहिए,लेकिन जब संगठन का विचारधारा सिंद्धांत और मूल्यों के साथ टकराव हो तो हमने विचारधारा के साथ रहना चाहिए संगठन को छोड़ देना चाहिए, विचारधारा, सिद्धांत और मूल्यों के ताकत से संगठन पुनः खड़ा किया जा सकता है।
डी के खापर्डे साहव ने 61 वर्ष की आयु में लगभग 35 वर्ष उन्होंने केवल और केवल समाज संगठन बनाने और सक्षम नेतृत्व को विकसित करने में लगा दिये। उन्होंने आखिर तक मुसीबतों का ही जीवन बसर किया। अपने लिए उन्होंने एक घर तक नहीं बनाया, किराये के घर में ही अपने परिवार का गुजारा किया।
डी के खापर्डे साहव ने अपने निर्माण के दो वर्ष पूर्व सन 1998 में भरूच, गुजरात मे नौं वें राज्य स्तरीय अधिवेशन में डी के खापर्डे साहब ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षीय भाषण में हम सबको आगाह करते हुए तीन चुनौतियों का जिक्र किया है जो हमारे लिए आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने कहा था की
आज समाज में जो लोग सक्षम है लेकिन उनमे पूरी तरह से ईमानदारी व सच्चाई नहीं है,
हमारे सामने तीन किस्म की Challenges है।
1) समाज में सही किस्म की लीडरशिप पैदा करना।
२.समाज में जो बदलाव आ रहा है इस बदलाव को काउंटर करने की राजनीति के माध्यम से जो कोशिश हो रही हैं। जिसमें हमारे अपने राजनीतिक नेता लोग सक्रिय रूप से, दुश्मनों के हाथ में खेलकर, इस परिस्थिति को बदलने की कोशिश कर रहे है। इस कोशिश का सामना हमें करना होगा।
3) हमारा समाज राजनीति करने की बात तो कर रहा है मगर राजनीतिक नेता पर अंकुश लगाने की बात हमारे समाज ने अभी सिखी नही है। हमारे राजनीतिक नेताओं पर अंकुश लगाने की बात भी हमे सीखनी होगी।
हम डी के खापर्डे साहब के जन्म दिवस पर आज उनको याद करते है और शपथ लेते है कि कि उनके द्वारा चलाये गए मिसन को हासिल करने के लिए अपना तन मन धन अर्पित कर देंगे।
डी के खापर्डे साहब ने खास कर नौकरी-पेशा एससी, एसटी, ओबीसी, और इनसे धर्मांतरितअल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारी-अधिकारीयों को पे बैक टू सोसायटी के लिए एक मंच दिया है।
डी के खापर्ड साहेब की जयंती पर
ब्राम्हणवादी व्यवस्था को मानने वाले और उनके गुलामों को
१. वोट नही देगें
२. पैसा धन संम्पति और सीधा आदि किसी भी
३. पुरानी परंपरा के अनुसार बेमतलव का संम्मन नही देगें
प्रकार का दान नही देगें